मंगलवार, 25 नवंबर 2008

निर्झर नीर बहे नयनों से ..

दूर देश से जब भी कोई पंछी उड़के आता है !
मेरे माजी का एक हिस्सा याद मुझे तब आता है !!


तन्हाई की तारीकी में जब यादें दस्तक देती है !
नयनों के गलियारे से एक आसूँ बाहर आता है !!

जब कुछ किरणें आती हैं इन खिड़की रोशनदानों से !
दिल की घाटी में सोया गम झट से बहार आता है !!

पिंजरे में बैठा एक पंछी जब अम्बर को तकता है !
मेरे भरते ज़ख्मों से तब कुछ खूं बहार आता है !!

निर्झर नीर बहे नयनों से जैसे बारिश में दरिया !
इन अश्कों से कोई पूछे कहाँ से ये जल आता है !!