सोमवार, 12 दिसंबर 2011

गधों के सर पे ताज


एक नयी कोशिश की है .....मार्गदर्शन करें !

१..............................................
धनुष बनाया धर्म का, जात-पात के तीर !
ब्रह्मास्त्र से कम नहीं, ये घाव करे गंभीर !
घाव करे गंभीर, बचोगे कब तक प्यारे !
ये सब-कुछ लेंगे लूट, करेंगे वारे-न्यारे !
कह निर्झर कविराय, नींद से अब तो जागो !
कुछ कर्ज शहीदों का है, उससे यूँ ना भागो !!


२. ...........................................

कहाँ चिरैया सोने की, है यहाँ बाज़ का राज !
लोकतंत्र में भी होता है, गधों के सर पे ताज !
गधों के सर पे ताज, मरे सब बारी-बारी !
गद्दी पर बैठे हैं, जब-जब अत्याचारी !
कह निर्झर कविराय, सुनो संतों की वाणी !
मत बेचो दीन-इमान, करो ना यूँ मनमानी !!

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