शुक्रवार, 26 सितंबर 2008

टूटा तारा ।

सुना हें
टूटते तारे को देखकर
जो मांगो मिल जाता हैं
मैं भी तो तारा था
किसी की आँख का
मैं भी तो टूटा हूँ
टूट के बिखरा हूँ
अफशोस फिर भी किसी को
कुछ ना दे सका
कैसे ? देता
बिन मांगे
मुझे तो देखा ही नही किसी ने
टूटते बिखरते
कैसे ? देखते
तारे तो रात को टूटते है
मैं तो टूटा हूँ
दिन के उजालों में

2 टिप्‍पणियां:

रंजना ने कहा…

अत्यन्त मार्मिक......हर शब्द पीड़ा का सागर समेटे है.बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.

निर्झर'नीर ने कहा…
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