सहरा में भटकता राही और प्यास की व्याकुलता
भूख से बिलखते बच्चे की बेबस माँ का मर्म
बेटे की अर्थी से झुकता बेसहारा बाप का कन्धा
शूखती फसल के पत्तो को देखते किसान की बेकशी
बाढ़ में बहती जिंदगी और मौत के आलिंगन का अहसास
मेरे दिल में ऐसे ही कुछ
अहसासों का ज्वार उठता है
और मै बांधने लगता हूँ
उन सारे अहसासों को
शब्दों की डोरी से कविता की माला में
लेकिन ये अहसास, मेरी कलम रोक लेते है
और में सिर्फ़ और सिर्फ़ महसूस करता हूँ
इन अहसासों के बे-इंतिहा दर्द और बेबसी को
शायद कोई नही बांध सकता इन अहसासों को
तभी तो ये सारे अहसास
बरसाती नदी की तरह
सारे तटबंधों को तोड़कर
आँखों की संकरी गलियों से
अश्क बनकर बह जाते है॥
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ख्वाबों का कुंभ
2 महीने पहले