मंगलवार, 30 सितंबर 2008

वक़्त के मरहम से ..

जब-जब वक़्त बुरा आया रिश्तों को बदलते देखा है !
माया के मोह में लोगों का ईमान बदलते देखा है !!

वक़्त के मरहम से हमने हर ज़ख्म को भरते देखा है !
अंबर से ज़मीं तक हर शय को दुनिया में बदलते देखा है !!

नभ में चमकते तारों को भी टूटके गिरते देखा है !
ख़ाक उड़ी नभ तक पहुँची तक़दीर बदलते देखा है !!

ख़ुशी की चाहत में हमने भी ग़म का मंज़र देखा है !
कुछ बदन चूमती मौजों को तूफां में बदलते देखा है !!

मिलने की चाह में दिलबर से इस नीर ने भी कई रूप धरे !
कभी उड़ के हवा के साथ चला कभी बर्फ़ में ढल के देखा है !!

2 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

bahut khoob, waqt wo marham hai jo har baat ke zakhm ko bhar deta hai.....

रंजना ने कहा…

वाह...बहुत बहुत सुंदर पंक्तियाँ लिखी आपने....एकदम सत्य निरूपण किया है .