शुक्रवार, 26 सितंबर 2008

रिश्ते !


लोग अक्सर मुझपे फिकरे कसते हैं
पडा रहता है टूटी खाट मैं
बुन क्यों नही लेता इसे फिर से
कैसे कहूँ क्यों नही बुन लेता ?
सोचता हूँ तो हाथ कांपने लगते है
ये खाट और रिश्ते मुझे एक से लगते हैं !

मैंने अपने हर नए रिश्ते की तरह
कितने शौक से बुना था हर ताना
कितने सुंदर लगते थे नए-नए !

जिंदगी में हर रिश्ता इस ताने जैसा ही हो गया
दोनों का न जाने कौन सा ताना कब टूट गया
साथ-साथ रहते हुए भी मुझे पता ना चला
धीरे-धीरे एक-एक कर सारे ताने टूट गए !

रह गए कुछ टूटे रिश्ते और टूटे हुए ख्वाब
टूटी हुई खाट के टूटे हुए तानों की तरह !

उलझ गया हूँ इन टूटे हुए रिस्तो में
मैं अब फिर से नही बुनना चाहता
ना किसी रिश्ते को ना ही इस टूटी खाट को !!

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1 टिप्पणी:

रंजना ने कहा…

आपकी पंक्तियों ने बड़ा भावुक कर दिया. जाने दीजिये,ईश्वर कष्ट देकर अपने प्रिया को इतना संवेदनशील बना देता है कि वह पूरी दुनिया का कष्ट गुन सके और उनकी पीड़ा हरने को कुछ सार्थक प्रयास कर सके.