मंगलवार, 30 सितंबर 2008

खुदकशी ।

था नशे में वो शज़र
हकीक़तों से बेखबर
वो चाहता था घूमना
आँधियों के साथ उड़के
आसमां में दूर तक !

अपनी जड़ता से दुखी
वो जड़ से द्वंद कर गया
वो चाहता था तोड़ना
रिश्ता जो अटूट था
जड़ से इस ज़मीन का !

पेड़ की नादानी से दुखी
जड़ ज़मी से मिलकर रोती है
खुदकशी कहो या खून इसे
रिश्तों की कीमत होती है !

जड़ ज़मी के बंधन छूट गए
रिश्तों के धागे टूट गए
उड़ना तो दूर उठ भी न सका
आंधी के साथ जब पेड़ गिरा !

आखिरी था वक़्त जब
वो देखता ही रह गया
ना ख़ुद की जड़ को काटना
वो ये ज़हान से कह गया !!


1 टिप्पणी:

रंजना ने कहा…

आखिरी था वक़्त जब
वो देखता ही रह गया
ना ख़ुद की जड़ को काटना
वो ये ज़हान से कह गया !!


waah.....adbhud likha hai. bahut hi sundar.