मंगलवार, 17 अगस्त 2010

वक़्त की ताल पे...............

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वक़्त की ताल पे रक्स करता रहा
अश्क पी-पी के जख्मों को भरता रहा !

थोड़ा जीता रहा थोड़ा मरता रहा
मौत की राह में, खेल करता रहा !

नट की रस्सी के जैसी है ये ज़िन्दगी
नट के जैसे, में रस्सी पे चलता रहा !

उसकी नज़रों ने, मेरी कसम तोड़ दी 
मैं तो पीने से, तौबा ही करता रहा !

नफ़स चलती रही आह भरता रहा    
ज़िगर में कहीं ज़र्फ़ पलता रहा !

वक़्त को सर झुका, मुद्दई मर चुका
मुकद्दमा मगर फिर भी चलता रहा !

रात भर बांम पर दीप जलता रहा
चाँद भी अब्र की ओट चलता रहा !

ज़ीस्त क्या है, फकत मौत तक का सफ़र
मैं तो नाहक ही मंजिल से डरता रहा !
................................................
रक्स...............नाँच
ज़र्फ़  ..............सहनशक्ति 

.................................................

19 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

आह!बेहद उम्दा प्रस्तुति।

राज भाटिय़ा ने कहा…

उसकी नज़रों ने, मेरी कसम तोड़ दी
मैं तो पीने से, तौबा ही करता रहा !
भाई बहुत उम्दा गजल लगी, धन्यवाद

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

नट की रस्सी के जैसी है ये ज़िन्दगी
नट के जैसे, में रस्सी पे चलता रहा !

बहुत खूबसूरत गज़ल....

जयंत - समर शेष ने कहा…

"वक़्त की ताल पे रक्स करता रहा
अश्क पी-पी के जख्मों को भरता रहा !

थोड़ा जीता रहा थोड़ा मरता रहा
मौत की राह में, खेल करता रहा !
"

Bahut hi sundar.... Aapane bahut gahari baat dheere se kah di.

Awadhesh Pandey ने कहा…

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One Word. Excellent.

Nirjhar neer ghajale bahata rahe,
Dua main rab se ye karta raha!

वीरेंद्र सिंह ने कहा…

वक़्त को सर झुका, मुद्दई मर चुका
मुकद्दमा मगर फिर भी चलता रहा !



Kya baat hai yaar .......

Tum gazab ka likhte ho.

Congratulations....

रंजना ने कहा…

ओह...लाजवाब...एक एक शेर लाजवाब !!!

एकदम मन में उतर गयी रचना.

बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल...वाह !!!!

tapish kumar singh 'tapish' ने कहा…

fir se ek bahut umda post sir ji
itni gehrai me dooba deti hai apki har nazm ki me kho hi jata hun

gyaneshwaari singh ने कहा…

वाह वाह

बहुत सुंदर भाव

रचना दीक्षित ने कहा…

नट की रस्सी के जैसी है ये ज़िन्दगी
नट के जैसे, में रस्सी पे चलता रहा !
वाह क्या बात है इतने दिनों के बाद वो भी इस लाजवाब ग़ज़ल के साथ अब कोई शिकायत ही कहाँ रही

kshama ने कहा…

वक़्त को सर झुका, मुद्दई मर चुका
मुकद्दमा मगर फिर भी चलता रहा !
Wah! Kya likha hai!

Urmi ने कहा…

रक्षाबंधन पर हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें! बहुत ही ख़ूबसूरत और लाजवाब ग़ज़ल लिखा है आपने!

ज्योति सिंह ने कहा…

नफ़स चलती रही आह भरता रहा
ज़िगर में कहीं ज़र्फ़ पलता रहा !

वक़्त को सर झुका, मुद्दई मर चुका
मुकद्दमा मगर फिर भी चलता रहा !

रात भर बांम पर दीप जलता रहा
चाँद भी अब्र की ओट चलता रहा !

ज़ीस्त क्या है, फकत मौत तक का सफ़र
मैं तो नाहक ही मंजिल से डरता रहा !
adbhut aanand ki anubhuti hui ,maza aa gaya padhkar ,waah waah waah iske siva shabd nahi mil rahe .aakhri do line gazab hi hai .

दिगम्बर नासवा ने कहा…

ज़ीस्त क्या है, फकत मौत तक का सफ़र
मैं तो नाहक ही मंजिल से डरता रहा ...

बहुत खूब ... क्या ग़ज़ब का शेर है ... दार्शनिक अंदाज़ का ..... लाजवाब ...

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

निर्झर'नीर जी
बहुत अच्छी ग़ज़ल लिखी है ।
वक़्त की ताल पे रक्स करता रहा
अश्क पी-पी के जख्मों को भरता रहा !

शानदार मतला है …
उसकी नज़रों ने, मेरी कसम तोड़ दी
मैं तो पीने से, तौबा ही करता रहा !

क्या कहने नीर जी !

ज़ीस्त क्या है, फकत मौत तक का सफ़र
मैं तो नाहक ही मंजिल से डरता रहा !

बढ़िया है …

एकाध जगह ख़टकता है …
जैसे मुकद्दमा इस बह्र में आ नहीं पाएगा

शुभकामनाओं सहित …


- राजेन्द्र स्वर्णकार

श्रद्धा जैन ने कहा…

नट की रस्सी के जैसी है ये ज़िन्दगी
नट के जैसे, में रस्सी पे चलता रहा !
waah gazab ka khyaal ......

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" ने कहा…

har alfaaz khubsurat

aapne apne baare me bhi bahut sunderr likha hai....

aadilrasheed ने कहा…

neer ji aapne apni behad chanchal tippandi ki magar urdu blog par mere hindi blog ke liye aap is blog par apni rai den
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रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत खूब बहुत ही बढ़िया गजल ..बहुत पसंद आई शुक्रिया