....
लकीर-ए-दस्त का लिक्खा समझ आया नहीं मुझको !
तू ही मुज़रिम तू ही मुंसिफ़, गुनाह तेरा सजा मुझको !!
ये मौसम का बदलना तो, मुझे भी रास आता है !
यूँ अपनों के बदलने का,चलन भाया नहीं मुझको !!
अगर हो मौज तूफानी तो साहिल भी लरजता है !
पढ़े शाम-ओ-सहर जिसने क़सीदे शान में मेरी !
वो ही अब ढूंढता है हाथ में खंजर लिए मुझको !!
अगर हो मौज तूफानी तो साहिल भी लरजता है !
समय का खेल है सारा, ना यूँ इल्जाम दे मुझको !!
लकीरें खींचकर कागज पे, कुछ खुदगर्ज लोगों ने !
वतन को बांटकर टुकड़ों में, बेघर कर दिया मुझको !!
......................
......................
19 टिप्पणियां:
neer sahib, ek behtreen nazm peshkarne ke liye
dils e badhai
वाह!सुन्दर अभिव्यक्ति! मेरा कथन:
"जब तलक हाथ में थी लकीरें थीं,
धुली पसीने से तो वो तकदीरेंथीं!"
बहुत खूब ..सुन्दर गज़ल
ये ऋतुओं का बदलना तो, मुझे भी खूब भाता है !
यूँ अपनों के बदलने का,चलन भाया नहीं मुझको !!
वाह वाह वाह....
एक से बढ़कर एक क्या शेर गढ़े हैं तुमने.....
लाजवाब सभी से सभी लाजवाब !!!
मनभावन ,बहुत ही लाजवाब ग़ज़ल....
ऐसे ही सुन्दर,उत्कृष्ट लिखते रहो...
शुभाशीष...
बहुत ही लाजवाब...बहुत खूब...
ये ऋतुओं का बदलना तो, मुझे भी खूब भाता है !
यूँ अपनों के बदलने का,चलन भाया नहीं मुझको !!
लाजवाब,लाजवाब,लाजवाब.
"लकीर-ए-दस्त का लिक्खा समझ आया नहीं मुझको !
वो ही मुज़रिम वो ही मुंसिफ़ गुनाह उसका सजा मुझको !!"
वाह वाह वाह..... निर्झर नीर..... कुछ नीर हमारी आखों से जहर चले..
लकीरें खींचकर कागज पे, कुछ खुदगर्ज लोगों ने !
वतन को बांटकर टुकड़ों में, बेघर कर दिया मुझको !!
- सुन्दर |
पढ़े शाम-ओ-सहर जिसने क़सीदे शान में मेरी !
वो ही अब ढूंढता है हाथ में खंजर लिए मुझको !!
यूँ तो सारे शेर ही उम्दा है. बहुत अच्छी प्रस्तुति.
अच्छा और सराहनीय !!शुभकामनायें !
नीर साहब
बहुत ही उम्दा नज़्म !
बहुत बहुत बधाई
bahut khoob.....antim panktiyan mann ko choo gai...
एक अच्छी रचना ....शुभकामनायें आपको !
Bahut khoob Neer bhai...
आपके लेखन की शैली और तरीका बहुत अच्छा लगा और पंक्तियाँ तो बेहतरीन थीं..
आभार
चलता जीवन पर आपके विचारों का इंतज़ार है
बहुत सुन्दर प्रस्तुति|
होली की हार्दिक शुभकामनाएँ|
लकीरें खींचकर कागज पे, कुछ खुदगर्ज लोगों ने !
वतन को बांटकर टुकड़ों में, बेघर कर दिया मुझको !!
waahhhhh
neeraj ji ye bataiye kaunsi pankti par wah wah na karun?????
har pankti lajawab hai........
नवसंवत्सर २०६८ की हार्दिक शुभकामनाएँ|
ये ऋतुओं का बदलना तो, मुझे भी खूब भाता है !
यूँ अपनों के बदलने का,चलन भाया नहीं मुझको !!
बहुत उम्दा ग़ज़ल....
एक टिप्पणी भेजें