दूर देश से जब भी कोई पंछी उड़के आता है !
मेरे माजी का एक हिस्सा याद मुझे तब आता है !!
तन्हाई की तारीकी में जब यादें दस्तक देती है !
नयनों के गलियारे से एक आसूँ बाहर आता है !!
जब कुछ किरणें आती हैं इन खिड़की रोशनदानों से !
दिल की घाटी में सोया गम झट से बहार आता है !!
पिंजरे में बैठा एक पंछी जब अम्बर को तकता है !
मेरे भरते ज़ख्मों से तब कुछ खूं बहार आता है !!
निर्झर नीर बहे नयनों से जैसे बारिश में दरिया !
इन अश्कों से कोई पूछे कहाँ से ये जल आता है !!
जो गरजते हैं वे बरसते नहीं
1 महीना पहले
2 टिप्पणियां:
पिंजरे में बैठा एक पंछी जब अम्बर को तकता है !
मेरे भरते ज़ख्मों से तब कुछ खूं बहार आता है !!
निर्झर नीर बहे नयनों से जैसे बारिश में दरिया !
इन अश्कों से कोई पूछे कहाँ से ये जल आता है !!
sach bahut gehre bhav hai har panktiyon mein,bahut khubsurat badhai
....कहाँ से ये जल आता है....बेमिसाल रचना...लिखते रहें.
नीरज
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