बुधवार, 11 फ़रवरी 2009

कर्म और किस्मत

हम भी चले थे शौक से
थी जिधर मंजिल मेरी
दिल में था जोश-ओ-जुनूं
और ख्वाब थे दौलत मेरी ।

नभ पे थी मेरी निगाहें
उड़ने की चाहत मेरी
होसलों के पंख थे और
साथ थी हिम्मत मेरी ।

राह में पर्वत थे ऊँचे
दूर थी मंजिल मेरी
तूफ़ान पीछे रह गए
थी चाल कुछ ऐसी मेरी

थी मोहब्बत की सजा
या बद'नसीबी ये मेरी
फल कहो कर्मो का मेरे
या कहो किस्मत मेरी ।

जिस जगह से एक कदम पर
मुझसे थी मंजिल मेरी
उस जगह पर ही खुदा ने
छीन ली आँखें मेरी ।।

7 टिप्‍पणियां:

रंजना ने कहा…

Bahut hi bhavpoorn aur marmik abhivyakti hai.

Sundar kavita ke liye badhai.

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत सुन्देर रचना है बहुत बहुत बधाई

महावीर ने कहा…

भावों से ओत प्रोत मार्मिक रचना है। बहुत पसंद आई। बधाई।
महावीर शर्मा

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

Nirjhar ji bhot sunder rachna....BDHAI....!!!

shama ने कहा…

Nirhjarji,
Aapke diye parichayse leke aapki rachnayon tak whai " nirjhar"-sa saral, naisargik dharapravah hai....apne aap raasteme aaye pahadse takraake, aur naya mod leke behtaa hua..
Kitnee rachnayon ke baareme likhun??
Kya ek baat poochh sakti hun ? Kuchh rachnayen mai apni dairy me likh apne pariwaar/saheliyaan,dostonko suna sakti hun??Naam aapkaa hi rahega, zahir hai...meri rachnayen to ye log jaantehee hain..! Aur mai to aapke jaisa taumr koshish karkebhi likh nahee paungi....na lekhika hun na kavi..!

gyaneshwaari singh ने कहा…

kalpanao ke sagar me duba diya apne...
love
sakhi

जयंत - समर शेष ने कहा…

अरे भाई कमाल कर दिया आपने...
अंत थोडा दुःख दे गया... पर ठीक है, ऐसा भी होता है.

अति सुन्दर..

~जयंत