बुधवार, 18 मार्च 2009

कुछ भी नही.

जब तक जियें हम
कुछ ऐसे जियें
ना हासिल हुआ ऐसा
कुछ भी नही !


और जब मरें हम
कुछ ऐसे मरें
जहाँ में हमारा तो
कुछ भी नही !


लोग जाते हैं
सब कुछ यहीं छोड़कर
मिलते हैं निशाँ,
और
कुछ भी नही !

क्या आए थे करने
क्या करते रहे हम
सिवा प्यार के,और

कुछ भी नही !

जी भर के पियो
प्यास जब भी लगे
नीर ही नीर है,और
कुछ भी नही !


5 टिप्‍पणियां:

रंजना ने कहा…

वाह !!! जीवन के जटिल गणित को संक्षिप्त शब्दों में सरल और भावपूर्ण अभिव्यक्ति दी तुमने....सन्देश देती ,बहुत बहुत सुन्दर रचना...

नीरज गोस्वामी ने कहा…

जियो तो ऐसे जियो जैसे सब तुम्हारा है
मरो तो ऐसे की जैसे तुम्हारा कुछ भी नहीं
आप की रचना पढ़ कर ये गाना याद आ गया....बहुत खूब लिखा है आपने...वाह...
नीरज

निर्झर'नीर ने कहा…

रंजना ji
नीरज गोस्वामी ji

tah-e-dil se shukria aapne padha or saraha.

नीरज ji ek baar fir se shukria ki aap se is khoobsurat geet ke bare mein jaankari mili jisse hum ab tak anbhigy the yakinan ise sunna khushkismatii hogi ab itna pata chala hai to kabhi na kabhi sunne ko bhi milega .

अनिल कान्त ने कहा…

आपने कम शब्दों में जीवन का ज्ञान दे दिया

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

RAJNISH PARIHAR ने कहा…

जियें तो ऐसे जियें ...अच्छी रचना लगी..सही है सोचतें कुछ है और होता कुछ और ही है...यही जीवन है...