शुक्रवार, 10 अप्रैल 2009

ऊँची-ऊँची चट्टानों से



ऊँची-ऊँची चट्टानों से
'नीर' गिरा निर्झर कहलाया
चोट लगी जो तन-मन मेरे
जग निर्मोही देख ना पाया !

झर-झर,झर-झर बहता जाए
दर्द को अपने सहता जाए
कोई ना जाने पीर पराई
लहू जिस्म का कहता जाए !

मेरे दर पे जो भी आया
मैंने सबको प्यासा पाया
प्यास बुझाई मैंने उसकी
जिसने मुझको गले लगाया !

ना राही ना कोई मंजिल
देख के राहें पग बढ़ जाए
इस जीवन का सार यही है
औरों की खातिर मिट जाए !

दर्द ने मुझको कभी जमाया
कभी जला के भाप बनाया
रंगहीन पानी में सबने
अपना-अपना रंग मिलाया !


13 टिप्‍पणियां:

रंजना ने कहा…

तुम्हारी यह रचना सचमुच निर्झरनी सी सतत प्रवाहमान है,जो अपने निर्मल पावन भाव और शब्द माधुर्य से मन को शीतल कर रही है..

बहुत बहुत सुन्दर प्रवाहयुक्त भावपूर्ण रचना...वाह !!!

शुभाशीष !! ऐसे ही लिखते रहो..

mehek ने कहा…

दर्द ने मुझको कभी जमाया
कभी जला के भाप बनाया
रंगहीन पानी में सबने
अपना-अपना रंग मिलाया !
jazbaaton ko prawah dena aapki kalam khub janti hai,sunder atisunder.

समयचक्र ने कहा…

बहुत सुन्दर....

Riya Sharma ने कहा…

सरल.सरस,माधुर्य लिए संवेदनशील रचना
बहुत खूब !!!!

साधुवाद !!!

hempandey ने कहा…

'इस जीवन का सार यही है
औरों की खातिर मिट जाए'
-सुंदर

अवाम ने कहा…

सुन्दर रचना है आपकी..
मैंने तो अब कविता लिखनी शुरू की है..
आपने बहुत अच्छा लिखा है..
सुन्दर..

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना!
आप का ब्लाग बहुत अच्छा लगा।
मैं अपने तीनों ब्लाग पर हर रविवार को
ग़ज़ल,गीत डालता हूँ,जरूर देखें।मुझे पूरा यकीन
है कि आप को ये पसंद आयेंगे।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

निर्झर प्रवाह की तरह ही आपकी रचना............प्रवाह में बहती हुयी, मधुर गीत की तरह है...........आनंद आ गया

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

दर्द ने मुझको कभी जमाया
कभी जला के भाप बनाया
रंगहीन पानी में सबने
अपना-अपना रंग मिलाया !

sunder geet rachna, sabhi chhand sarahniya.

nirjhar bhai itfakan hi sahi aap mere blog par aay meri rachnaon ko saraha, hardik dhanyawaad, aapke aane ne mujhe bhi aapke blog par kheencha, ek achchi rachna padhne ko mili,aapko apni pasand banaya.

ghazab hua ki tere lab pe mera naam aaya
sukoon dil ko mila rooh ko aaraam aaya
lamha bhar ko hi sahi yaad to humko kiya
is bahane hi sahi ye tera paigaam aaya,

अमिताभ श्रीवास्तव ने कहा…

waah bahut sundar chhand..
ना राही ना कोई मंजिल
देख के राहें पग बढ़ जाए
इस जीवन का सार यही है
औरों की खातिर मिट जाए !
naa raahi naa manzil...yaani kuchh bhi nahi he fir jivan kaa saar yahi ki aouro ke khaatir mit jaaye...yah bhi to ek prakaar se aapka dhyey hua..,
bahut achcha likhte he aap..badhaai

जयंत - समर शेष ने कहा…

इसे पढ़ मन बोला वाह वाह,
और आगे भी पढ़ने की है चाह...

"प्यास बुझाई मैंने उसकी,
जिसने मुझे गले लगाया.."

अति सुन्दर..

~जयंत

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

मेरे दर पे जो भी आया
मैंने सबको प्यासा पाया
प्यास बुझाई मैंने उसकी
जिसने मुझे गले लगाया

निर्झर जी हमने तो अपनी प्यास बुझा ली आपकी इस सुंदर कविता से .......आप इसी तरह सबकी प्यास बुझाते रहें......!!

shama ने कहा…

Lagta hai,aaj pooree shaam aapkee rachnayen padhneme beet jayegee...!
Ekse badhke ek..!

http://shamasansmaran.blogspot.com

http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com