शनिवार, 6 जून 2009

चकवे जैसी प्रीत मेरी



चाँद के जैसी सूरत तेरी
चकवे जैसी प्रीत है मेरी
जोगी जैसे फिरूं भटकता
इश्क कहे ये रीत है मेरी !

शमां हुस्न की परवाने को
ले बाँहों में जला रही है
हुस्न कहे, ले हार गया तू
इश्क कहे ये जीत है मेरी !

तेरे प्यार की एक बूँद में
जीवन डोर बंधी मेरी
मैं सदियों का प्यासा हूँ
चातक जैसी प्यास है मेरी !

जैसे चातक गगन निहारे
मैं यूँ राह तकूँ तेरी
इश्क समुन्दर मैं ना चाहूं
एक बूँद की प्यास है मेरी !

.........................................

18 टिप्‍पणियां:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

इश्क समुन्दर मैं ना चाहूं
एक बूँद की प्यास मेरी !

वाह निर्झर जी वाह...बेहद खूबसूरत रचना...बधाई...
नीरज

M VERMA ने कहा…

चातक जैसी प्यास --- बहुत खूब निर्झर जी बहुत सुन्दर लिखा है.

जयंत - समर शेष ने कहा…

"चाँद के जैसी सूरत तेरी
चकवे जैसी प्रीत मेरी
जोगी जैसे फिरूं भटकता
इश्क कहे ये रीत मेरी ! "

Suppppppppppperb!!!
Bahut sundar.

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

चाँद के जैसी सूरत तेरी
चकवे जैसी प्रीत मेरी
जोगी जैसे फिरूं भटकता
इश्क कहे ये रीत मेरी ! ,

wah wah wah, nirjhar bhai, bahut manohar/manbhavan geet likha hai,behad pasand aaya, badhai.

Vinay ने कहा…

बहुत सुन्दरता से मन का भेद कहा है आपने

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

Nirjharji, Beautyful poem, but frankly speaking, I don't like only buttering,आदतन खामियों पर जब नजर पड़ती है तो चुप नहीं रह पाता, आप अगर बुरा न माने तो अपनी कविता में " है' शब्द जोड़ दे तो मेरा ख्याल है कविता और भी सुन्दर लगेगी !

चाँद के जैसी सूरत तेरी
चकवे जैसी प्रीत Hai मेरी
जोगी जैसे फिरूं भटकता
इश्क कहे ये रीत hai मेरी !
...and so on :

हो सकता है कि आपने किसी ख़ास वजह से "है" शब्द प्रयोग न किया हो, अगर ऐसा है तो मुझे क्षमा करना !

Urmi ने कहा…

मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! मैं अब आपकी छटवी फोल्लोवेर बन गई इसलिए आती जाती रहूंगी! मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है!
बहुत ही सुंदर कविता लिखा है आपने!

!!अक्षय-मन!! ने कहा…

aap bahut hi accha likhte hain.......
अक्षय-मन

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

रचना मुझे बहुत बहुत अच्छी लगी....वाह...

Sajal Ehsaas ने कहा…

शमां हुस्न की परवाने को
ले बाँहों में जला रही है
हुस्न कहे, ले हार गया तू
इश्क कहे ये जीत है मेरी

kya kahoon kitna mazaa aaya hai in panktiyo ko padhkar...ek masoom jazbaati rachna :)


www.pyasasajal.blogspot.com

Dev ने कहा…

Really a great poem.. such me dil ko chhoo gayi..

Regards.

DevPalmistry |Lines tell the story of ur life

Sajal Ehsaas ने कहा…

bahut lamba break le liya aapne lekhan se??...kuch naya padhne ka mauka kab milega

श्रद्धा जैन ने कहा…

Wah kya geet likha hai
padha nahi gungunaya hai
bahut sunder

शमां हुस्न की परवाने को
ले बाँहों में जला रही है
हुस्न कहे, ले हार गया तू
इश्क कहे ये जीत है मेरी !


har shabad kamaal

hem pandey ने कहा…

'इश्क समुन्दर मैं ना चाहूं
एक बूँद की प्यास है मेरी !'

- सुन्दर.

shama ने कहा…

Aapka 'link' kho baithee thee..aur bade dinon baad khoj nikala..dekh rahee hun, kin,kin rachnaon se mehroom rah gayee..!
Ek jharne kee lay baddhta hai aapke lekhanme...!
Kayi baar padha..ekek pankti ko..!

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Naveen Tyagi ने कहा…

bahut sundar

vijay kumar sappatti ने कहा…

nirjhar ji is shaandar abhivyakti ke liye meri badhai sweekar karen.. aapne to kavita me praan foonk diye hai ...

aabhar

vijay

pls read my new poem "झील" on my poem blog " http://poemsofvijay.blogspot.com

रंजना ने कहा…

Waah ! Waah ! Waah !

Bhaavpoorb prawaahmayi man ko mugdh karti atisundar rachna...Waah !!

Aise hi likhte rahen...shubhkamnayen...