शुक्रवार, 11 सितंबर 2009

समेटे हूँ मैं टुकड़ों को

सबब थी जीने का जो भी
हर उस ख्वाहिश ने दम तोडा
खामोशी इस कदर छाई
की सब ख्वाबों ने घर छोड़ा

दर--दीवार जिस घर की
मुझे जाँ से भी प्यारी थी
फ़क़त इस पेट की खातिर
मैंने उस घर को भी छोड़ा

तलाश--जीस्त में हमने
खाक छानी है सहरा की
मसर्रत छिन गई तब से
वतन जब से मैंने छोडा

वो पत्थर जिसको राहों से
हटाकर मैंने पूजा था
झुका सर जिसके सजदे में
उसी पत्थर ने सर फोड़ा

बची अब कोई हसरत
समेटे हूँ मैं टुकड़ों को
बसाया जिसको इस दिल में
उसी दिलबर ने दिल तोडा

......................................

24 टिप्‍पणियां:

Mishra Pankaj ने कहा…

अच्छी रचना बधाई

अनिल कान्त ने कहा…

shabd bahut kuchh bolte hain

इक जोगी रमता ने कहा…

बहुत कुछ कहती है आपकी रचना..

रंजना ने कहा…

बहुत ही गहन भावुक अभिव्यक्ति....
पीडा शब्दों में ढल साकार हो गयी है...
रचना की प्रवाहमयता बेजोड़ है...

इस सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना के लिए बधाई..

ओम आर्य ने कहा…

बची न अब कोई हसरत
समेटे हूँ मैं टुकड़ों को
बसाया जिसको इस दिल में
उसी दिलबर ने दिल तोडा ॥
BAHUT HI MRMSPARSHI..........AAPAKI LEKHAN ME SUNDAR BHAW OUR SHABD DONO HI DEKHANE KO MILE .........BADHAYI

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

वो पत्थर जिसको राहों से
हटाकर मैंने पूजा था
झुका सर जिसके सजदे में
उसी पत्थर ने सर फोड़ा ।

बहुत सुन्दर !

Unknown ने कहा…

यकी था जिसपे
सुनेगा बात मेरी जो
उसी ने मुझे अनसुना
अनदेखा कर दिया

mehek ने कहा…

bahut gehre jazbaat,dil ko hu leti sunder rachana.

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

वो पत्थर जिसको राहों से
हटाकर मैंने पूजा था
झुका सर जिसके सजदे में
उसी पत्थर ने सर फोड़ा

bahut khoob nirjhar, umda rachna. badhaai.

Himanshu Pandey ने कहा…

तलाश-ए-जीस्त में हमने
खाक छानी है सहरा की
मसर्रत छिन गई तब से
वतन जब से मैंने छोडा ।"

बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति । धन्यवाद ।

Udan Tashtari ने कहा…

बेहतरीन रचना.

अपूर्व ने कहा…

खूबसूरत कविता..

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर रचना, दर्द भरे शव्दो मै लिखी आप ने.
धन्यवाद

Pratik Maheshwari ने कहा…

क्या भावात्मक रचना.. बहुत ही अच्छा लगा..

शरद कोकास ने कहा…

दिल टूटा है तो जुड़ भी जायेगा इत्मिनान रखिये

Naveen Tyagi ने कहा…

शीशे में मय,मय में नशा मै नशे में हूँ.
उल्फत मे गम गम में मजा मै मजे में हूँ.

hem pandey ने कहा…

'वो पत्थर जिसको राहों से
हटाकर मैंने पूजा था
झुका सर जिसके सजदे में
उसी पत्थर ने सर फोड़ा '
- बहुत खूब.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

dard bah raha hai bilkul jharane ki tarah......sundar abhivyakti

बवाल ने कहा…

बसाया जिसको इस दिल में
उसी दिलबर ने दिल तोडा ॥ अहा!
क्या ब्बात कही भाई वाह वाह। बहुत सुन्दर रचना। इतने दिन हमारी मुलाक़ात कैसे न हुई ?

Science Bloggers Association ने कहा…

दिल के जज्बों के सहारे इस जालिम जमाने की अच्छी तस्वीर उतारी है आपने।
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Rajeysha ने कहा…

Kya mazboori hai!! wah!

प्रकाश गोविंद ने कहा…

बसाया जिसको इस दिल में
उसी दिलबर ने दिल तोडा


बहुत ही भावुक रचना
खूबसूरत अभिव्यक्ति
अच्छा लगा
धन्यवाद

आज की आवाज

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

तलाश-ए-जीस्त में हमने
खाक छानी है सहरा की
मसर्रत छिन गई तब से
वतन जब से मैंने छोडा ।

BAHUT SUNDER

Unknown ने कहा…

bhai saahab hum to aap ki rachnawo ke mureed ho gaye