इतना तो मुझको भी मालूम था साथ साया अंधेरों में रहता नहीमेरे सरपे था सूरज चमकता हुआमगर मेरे क़दमों में साया ना था । बन के मैं जोगी भटकता रहाजिगर में कहीं दर्द पलता रहासिसकता रहा आह भरता रहा बेखुद था क्या-क्या मैं करता रहा !रूह बेचैन है दिल भी मजबूर हैअब तो, ये चेहरा भी बे-नूर हैआखिरी वक़्त है अब जवां दर्द हैजिंदगी क़र्ज़ थी जिंदगी क़र्ज़ है । .......................................
12 टिप्पणियां:
आखिरी वक़्त है अब जवां दर्द है
जिंदगी क़र्ज़ थी जिंदगी क़र्ज़ है ।
अच्छी रचना के लिए बधाई
http://dunalee.blogspot.com/
्बढिया रचना है।बधाई।
बहुत अच्छी रचना
बहुत सुंदर रचना .. बधाई !!
बहुत सुंदर रचना. धन्यवाद
बहुत ही उम्दा रचना
अभी तो लगे रहो भाई ,,
WAH KYA BAAT HAI, ZINDGI KARZ THI
ZINDGI KARZ HAI.
इतना तो मुझको भी मालूम था
साथ साया अंधेरों में रहता नही
मेरे सरपे था सूरज चमकता हुआ
मगर मेरे क़दमों में साया ना था ।
bahut sahi baat
andhere mein hi nahi aajkal chamkte suraj ke saath bhi saya nahi hai
पीडा को अपने शब्दों में संवार तुम हमेशा ही उसे अत्यंत प्रभावोत्पादक बना दिया करते हो....
बहुत ही सुन्दर रचना....
लेकिन.... कुछ हौसलों की बात भी किया करो...शाम को तो बहुत उकेरा ,कुछ सुबह की भी बात करो...
मैं की जगह सब जगह में हो गया है,प्लीज उसे sudhaar लो..
jindgi se itna khafa kyon rahte ho bhai.
जिंदगी क़र्ज़ थी जिंदगी क़र्ज़ है ।
मायूस जज़्बात की तस्वीर पेश करती हुई
उदास रचना ...
लेकिन बुनावट बहुत अच्छी है
रंग कोई भी हो ....
कला परखी जाती है
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