.........
हर आँगन में ख़ामोशी हैसब उजड़ा-उजड़ा लगता है
दिल में लावा पिघल रहा
मन उखड़ा-उखड़ा लगता है पथराई सी आँखें है
हर पेट में पीठ समायी है
ईमान बचा के रख्खा है
मजदूर की यही कमाई है
भावहीन है हर चेहरा
हर चेहरे में ऱब दिखता है
कौन यहाँ अहसास ख़रीदे
ज़िस्म यहाँ पे बिकता है
आन, मान, मर्यादा की
बातें अब बहुत पुरानी है
ना राम यहाँ के राजा है
ना लक्ष्मीबाई रानी है
.................