मंगलवार, 28 जनवरी 2014

इस देश को कौन बचाएगा ?


२६ जनवरी २०१४ एक काव्य गोस्ठी में युवा ओज कवि प्रख्यात मिश्रा को सुनकर मैंने भी कुछ ओज लिखने की कोशिश की है,अपने शब्दों से अनुग्रहित करें। 

जयचंदों की कमी नही माँ , माना मेरे देश में ।
राणा और शिवाजी भी तो, बसते हैं इस देश में ।
दुश्मन का सर काट-काट माँ, ढेरों-ढेर लगा देंगे । 
बन बिस्मिल, शेखर,भगतसिंह माँ, चरणों शीश चढ़ा देंगे ।
दिल से गले मिलोगे तो हम, बाँहों में भी भर लेंगे ।
ग़र भारत के सर पर बैठे तो, कुरुकक्षेत्र भी कर लेंगे ।
ओढ़ भेड़ कि खाल भेड़िये, बैठे है कुछ देश में ।
कुछ गद्दार छुपे बैठे हैं, नेताओं के भेष में ।
वीर सपूतों के आगे कोई दुश्मन टिक नहीं पायेगा । 
लेकिन इन गद्दारों से इस देश को कौन बचाएगा ?
इस देश को कौन बचाएगा ? इस देश को कौन बचाएगा ?
   


…………………………………………
  


रविवार, 28 जुलाई 2013

जीना है तो मरना होगा

…………………………


पर्वत-पर्वत टूट रहे हैं
घर-द्वारे सब छूट रहे हैं
कैसे उनको इन्सां कह दूँ 
बेबस को जो लूट रहे हैं !

खतरे में अब देश पड़ा है 
देश का नेता मौन खड़ा है
कुछ तो आखिर करना होगा
जीना है तो मरना होगा !

इश्क-मोहब्बत की सौगातें 
कलियाँ-भवरों की ये बातें 
इन बातों का वक़्त नहीं है
जो उबले ना,वो रक्त नहीं है !

धधक रहा था जो भी दिल में 
लावा बन के धिकल रहा है 
पत्थर सा दिल पिघल रहा है 
नीर-नयन से निकल रहा है !!


..................................................  

मंगलवार, 23 अप्रैल 2013

धन की खातिर



बहुत दिन बाद एक कोशिश
.....................................

धन की खातिर लोग यहाँ
सुख-चैन नींद, खोते देखे !
दौलत-शौहरत पाकर भी
कुछ लोग यहाँ, रोते देखे  !
उल्लू जैसी हो गयी फितरत
रात जगे दिन सोते देखे !  
इंसानों की जात ना पूछो 
मन मैला तन धोते देखे !
के गैरों का गिला करूँ, जब 
अपने ही कांटे बोते देखे !
मूल्य रहे ना मान रहा, बस
रिश्तों के गट्ठर ढोते देखे !
देखे पीर फ़कीर 'नीर' सब 
नेता और अभिनेता देखे !
गद्दी खातिर बेच दिया सब 
देश के टुकड़े होते देखे !!

....................................    

मंगलवार, 16 अक्टूबर 2012

सब खुशियाँ क़ैद मिली मन में

........... 


अनमोल लम्हे कुछ 
जीवन के 
हमसे राहों में छूट गए
हम नादाँ थे नादानी में  
कुछ बंधन हमसे टूट गए
मैं लौट के फिर से आया हूँ 
यादों के टुकड़ों को चुनने 
इन राहों से इन बाँहों से 
था य़की मुझे मिल जाने का
मुरझाई कली खिल जाने का 
कुछ राही बरसों बाद  मिले 
कुछ वीराने आबाद मिले  
कुछ गीत फ़िजा में घुले हुए
सब मन के दर्पण धुले हुए
में भटक रहा था यहाँ वहां 
खुशियों की खातिर कहाँ-कहाँ
सब खुशियाँ क़ैद मिली मन में
अब सुकूँ मिला है जीवन में !



..............

मंगलवार, 3 अप्रैल 2012

आईने में ज़िन्दगी

भीख मांग रहा है फिल्म ‘मदर इंडिया’ का जमींदार ......
उसकी आवाज़ बहुत हल्की है
उसकी बातों में बहुत तल्खी है
वो भी तारा था चमकता नभ का 
बात सच है ये मगर कल की है  
धूल चेहरे पे ज़मी है अब तक 
उसकी आँखों में नमी है अब तक
उसने रिश्तों को जिया है शायद
उसने विष पान किया है शायद
उसमें ज़ज्बात अभी बाकी है
ज़ीस्त की आस अभी बाकी है
वो भी तकदीर का मारा होगा 
वो भी इस वक़्त से हारा होगा !!

.......................................

बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

रोज आँखें ये नया ख्वाब

.................

रोज एक हसरत को दफ़न करता हूँ 
रोज आँखें ये नया ख्वाब सज़ा लेती हैं !
रोज दीवार दरकती है मेरे जेहन की
रोज उम्मीदें नयी नीव ज़मा लेती है !
विश्वास में विष का भी वास होता है
आस ही टूटते रिश्तों को बचा लेती है ! 
ना कीमत-ए-वफ़ा है ना कद्र-ए-मोहब्बत
हसरतें दिल में दिए फिर भी जला लेती हैं !
बचने का हुनर सीख ले अब तो निर्झर
दुनिया अब भी सच को ही सजा देती है !!  

 
  .......................

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

कमज़र्फ आँखें

..................
 
 
दिल के सागर में 
जब-जब आते है
ज़ज्बातों के झंझावात
तब-तब उठती हैं 
बेबसी और वेदना की 
ऊँची-ऊँची लहरें
सुनामी की तरह 
जिन्हें ये कमज़र्फ आँखें 
चाहते हुए भी 
रोक नहीं पाती
और बहा देती है
उस नमक को
जो जमा किया था
वक़्त की छलनी से 
दर्द को छानकर
दिल की तलहटी में.


........................