गुरुवार, 19 मार्च 2009

नि:शब्द और खामोश

श्याह काली रातों में
कुछ अहसासों के रेले
ख्वाहिशों की गठरी लेकर
मेरे पास आते हैं !

एक-एक कर सारे अहसास
अपनी ख्वाहिशों की गठरी
मेरे आगे खोलकर
मुझसे मांगते हैं !

उन सारे अनछुए लफ्जों को
जो मैंने कभी चुने थे
ख्वाहिशों के साथ मिलकर
सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारे लिए !

अब ना वो ख्वाहिशें है
ना वो सारे अनछुए लफ्ज़
बस ये खामोशी है और
कुछ बिखरी यादें !

लफ्जों को न पाकर
उदासी और मायूसी के साथ
एक-एक कर सारे अहसास
वापस लौट जाते है !

मैं हमेशा की तरह
बस देखता रह जाता हूँ
इस श्याह काली रात की तरह
नि:शब्द और खामोश !!
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बुधवार, 18 मार्च 2009

कुछ भी नही.

जब तक जियें हम
कुछ ऐसे जियें
ना हासिल हुआ ऐसा
कुछ भी नही !


और जब मरें हम
कुछ ऐसे मरें
जहाँ में हमारा तो
कुछ भी नही !


लोग जाते हैं
सब कुछ यहीं छोड़कर
मिलते हैं निशाँ,
और
कुछ भी नही !

क्या आए थे करने
क्या करते रहे हम
सिवा प्यार के,और

कुछ भी नही !

जी भर के पियो
प्यास जब भी लगे
नीर ही नीर है,और
कुछ भी नही !


मंगलवार, 3 मार्च 2009

सफर जिंदगी का ..

दरिया है वक़्त का ये
बहना है सबको इसमें
बेबस बुझा- बुझा सा
तनहा मैं बह रहा हूँ !

न बस में पकड़ सकूं
उस कारवाँ को मैं
उड़ती है जिसकी राह में
गर्द -ए-सफर अभी तक !

ना हक है रुक के राह में
करूँ उसका इंतजार
आएगा मेरे बाद जो
तनहा मेरी तरह !

वक़्त-ए-सफर अलग है
सबकी राह-ए-जिंदगी का
मंजिल है सबकी एक
मुझे बस इतनी ख़बर है !!