श्याह काली रातों में
कुछ अहसासों के रेले
ख्वाहिशों की गठरी लेकर
मेरे पास आते हैं !
एक-एक कर सारे अहसास
अपनी ख्वाहिशों की गठरी
मेरे आगे खोलकर
मुझसे मांगते हैं !
उन सारे अनछुए लफ्जों को
जो मैंने कभी चुने थे
ख्वाहिशों के साथ मिलकर
सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारे लिए !
अब ना वो ख्वाहिशें है
ना वो सारे अनछुए लफ्ज़
बस ये खामोशी है और
कुछ बिखरी यादें !
लफ्जों को न पाकर
उदासी और मायूसी के साथ
एक-एक कर सारे अहसास
वापस लौट जाते है !
मैं हमेशा की तरह
बस देखता रह जाता हूँ
इस श्याह काली रात की तरह
नि:शब्द और खामोश !!
--------------------
बुनियाद
3 हफ़्ते पहले