शनिवार, 26 सितंबर 2015

रख धरा पै ये कदम



रख धरा पै ये कदम, और
नभ पै रख अपनी निगाहें
तुम यक़ीनन छू ही लोगे
एक दिन तारों की बाहें ।।

ये कदम रुकने ना पायें
शीश भी झुकने ना पाए
हो भले काटों भरी 
राही तेरे जीवन की राहें।।

बनके जुगनू आस तेरी
हर कदम रोशन करेगी
हो अँधेरा लाख चाहे
भोर को कब रोक पाये।।

तू कहीं सो जाएँ ना
रस्ते में तू खो जाए ना
है बहुत दिलकश बुराई
उसका तू हो जाए ना।।

साथ ये छूटे कभी ना
हौसले टूटे कभी ना
दोस्त, मिल जाये तो कहना
'नीर' से रूठे कभी ना।।



गुरुवार, 26 मार्च 2015

"जरुरी है"

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अँधेरे गर ना होंगे तो
ये जुग्नू भी नहीं होंगे
उजाले भी जरुरी है 
अँधेरे भी जरूरी है।

अगर ये दिन जरूरी है
तो रजनी भी जरूरी है
ये चंदा भी जरुरी है
ये तारे भी जरूरी है।

सरिता भी जरूरी है 
ये सागर भी जरूरी है
अगर जीवन जरूरी है 
तो ये जल भी जरुरी है।

ये किस्तें भी जरुरी है  
ये रिश्ते भी जरुरी है
कहीं पर तुम जरुरी हो 
कहीं पर हम जरुरी है।।  



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गुरुवार, 19 मार्च 2015

'परिवर्तन '


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इस तरह भी ना कहो
भले की भी, बुरी लगे
मना भी इस तरह करो 
कि ना भी,ना सी,ना लगे !

ये दौर कुछ अलग सा है 
यहाँ दोस्त भी फ़लक सा है
कहीं पड़ ना जायें सिलवटें
गले लगें, की ना लगें !

वो गैर की सुनें भी क्यूं 
जिन्हें बाप की बुरी लगे
बेटे इस क़दर बड़े हुए 
की माँ भी,माँ सी,ना लगे !

काफियों के फेर में क्यूँ
मन की मन में ही रहे 
'नीर' ने मन की कही 
भली लगे ,बुरी लगे !!
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