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पर्वत-पर्वत टूट रहे हैं
घर-द्वारे सब छूट रहे हैं
कैसे उनको इन्सां कह दूँ
बेबस को जो लूट रहे हैं !
खतरे में अब देश पड़ा है
देश का नेता मौन खड़ा है
कुछ तो आखिर करना होगा
जीना है तो मरना होगा !
इश्क-मोहब्बत की सौगातें
कलियाँ-भवरों की ये बातें
इन बातों का वक़्त नहीं है
जो उबले ना,वो रक्त नहीं है !
धधक रहा था जो भी दिल में
लावा बन के धिकल रहा है
पत्थर सा दिल पिघल रहा है
नीर-नयन से निकल रहा है !!
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