रविवार, 28 जुलाई 2013

जीना है तो मरना होगा

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पर्वत-पर्वत टूट रहे हैं
घर-द्वारे सब छूट रहे हैं
कैसे उनको इन्सां कह दूँ 
बेबस को जो लूट रहे हैं !

खतरे में अब देश पड़ा है 
देश का नेता मौन खड़ा है
कुछ तो आखिर करना होगा
जीना है तो मरना होगा !

इश्क-मोहब्बत की सौगातें 
कलियाँ-भवरों की ये बातें 
इन बातों का वक़्त नहीं है
जो उबले ना,वो रक्त नहीं है !

धधक रहा था जो भी दिल में 
लावा बन के धिकल रहा है 
पत्थर सा दिल पिघल रहा है 
नीर-नयन से निकल रहा है !!


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मंगलवार, 23 अप्रैल 2013

धन की खातिर



बहुत दिन बाद एक कोशिश
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धन की खातिर लोग यहाँ
सुख-चैन नींद, खोते देखे !
दौलत-शौहरत पाकर भी
कुछ लोग यहाँ, रोते देखे  !
उल्लू जैसी हो गयी फितरत
रात जगे दिन सोते देखे !  
इंसानों की जात ना पूछो 
मन मैला तन धोते देखे !
के गैरों का गिला करूँ, जब 
अपने ही कांटे बोते देखे !
मूल्य रहे ना मान रहा, बस
रिश्तों के गट्ठर ढोते देखे !
देखे पीर फ़कीर 'नीर' सब 
नेता और अभिनेता देखे !
गद्दी खातिर बेच दिया सब 
देश के टुकड़े होते देखे !!

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