मंगलवार, 10 मई 2011

चाँद माना धरा से बहुत दूर है !

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चाँद माना धरा से बहुत दूर है ! 
चांदनी ये मगर कब कहाँ दूर है !!

भटकता फिरूं में यहाँ से वहां !
ऱब इन्सान से कब कहाँ दूर है !!

किसी के लिए मांग मन से दुआ !
दुआ से असर कब कहाँ दूर है !!

ये माना तू मुझसे बहुत दूर है ! 
दिल ये मगर कब कहाँ दूर है !!

मिलते नहीं दो किनारे तो क्या !
बीच धारा बहे फिर कहाँ दूर है !!

स्याह काली सही रात ढल जाएगी !
सुबह रात से कब कहाँ दूर है !!

जला तो सही 'नीर' शम्म ए कलम !
कलम हाथ से कब कहाँ दूर है !!


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बुधवार, 4 मई 2011

हर आँगन में ख़ामोशी है

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हर आँगन में ख़ामोशी है
सब उजड़ा-उजड़ा लगता है
दिल में लावा पिघल रहा 
मन उखड़ा-उखड़ा लगता है
पथराई सी आँखें है  
हर पेट में पीठ समायी है  
ईमान बचा के रख्खा है 
मजदूर की यही कमाई है  
भावहीन है हर चेहरा 
हर चेहरे में ऱब दिखता है  
कौन यहाँ अहसास ख़रीदे 
ज़िस्म यहाँ पे बिकता है  
आन, मान, मर्यादा की 
बातें अब बहुत पुरानी है 
ना राम यहाँ के राजा है 
ना लक्ष्मीबाई रानी है


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