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चाँद माना धरा से बहुत दूर है !
चांदनी ये मगर कब कहाँ दूर है !!
भटकता फिरूं में यहाँ से वहां !
ऱब इन्सान से कब कहाँ दूर है !!
किसी के लिए मांग मन से दुआ !
दुआ से असर कब कहाँ दूर है !!
ये माना तू मुझसे बहुत दूर है !
ऱब इन्सान से कब कहाँ दूर है !!
किसी के लिए मांग मन से दुआ !
दुआ से असर कब कहाँ दूर है !!
ये माना तू मुझसे बहुत दूर है !
दिल ये मगर कब कहाँ दूर है !!
मिलते नहीं दो किनारे तो क्या !
बीच धारा बहे फिर कहाँ दूर है !!
स्याह काली सही रात ढल जाएगी !
सुबह रात से कब कहाँ दूर है !!
जला तो सही 'नीर' शम्म ए कलम !
कलम हाथ से कब कहाँ दूर है !!
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