मंगलवार, 30 दिसंबर 2008

जा रहे हो कौन पथ पर ?


पथ को तुम देखो जरा
मन की आँखें खोलकर
सत्यपथ को छोड़कर तुम
जा रहे हो कौन पथ पर !

ना प्यार के साए है इस पथ
ना कोई हमराह है
काफिलों को छोड़कर तुम
जा रहे हो कौन पथ पर !

ना कोई मंजिल है इस पथ
ना लौटने के है निशाँ
इंसानियत को छोड़कर तुम
जा रहे हो कौन पथ पर !

पाप के पथ आज तक
जो भी गया वो मिट गया
ज्ञान का पथ छोड़कर तुम
जा रहे हो कौन पथ पर !

मंगलवार, 23 दिसंबर 2008

बेबस जवानी....



बचपन याद नही
बस याद है मुझे
जिम्मेदारियों के बोझ से
लड़कपन के लड़खड़ाते कदम

इससे पहले की जवानी
मेरे दर पे दस्तक देती
में ताला लगा के चल दिया
तलाश में रोटी की

एक बार जब में गाँव गया था
तब पता चला , वो आयी थी
दर पे ताला देख उदास मन से
मुझे ढूँढने शहर चली गयी

कल किसी ने मुझे आवाज दी
भीड़ में चारों तरफ़ देखा
दूर , सड़क के उस पार से
हाथ हिलाता एक अजनबी चेहरा

कशमकश के भाव लिए
जब मै उसके पास गया
उसने अपनी बाहों का हार
मेरे गले में डाल दिया

कहने लगी ,ऐसे क्या देखते हो
में जवानी हूँ , तुम्हारी जवानी
फिर आउंगी , अगले जनम में
इस बार मेरा इंतजार करना

में देखता रहा उसे जाते हुए
और किसी ने आ पकड़ा मेरा हाथ
कहने लगा ,में हूँ ना ! में बुढापा हूँ
आज से तेरे साथ रहूंगा ।

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शनिवार, 13 दिसंबर 2008

अक्सर सोचता हूँ !

---अक्सर सोचता हूँ
मैं तेरा ही एक रूप हूँ !

तू भी अकेली है
में भी अकेला हूँ
तुझे भी तलाश है एक आशियाँ की
मुझे भी तलाश है एक अजनबी की

---अक्सर सोचता हूँ
मैं तेरा ही एक रूप हूँ !


यकीनन तुझे मोहब्बत है मेरे वजूद से
तू चाहती है मेरा साथ उम्र भर के लिए

-------शायद मैं भी चाहता हूँ तुझे
वरना क्यूँ ? घंटों बातें करता तुझसे
क्यूँ ? सोचता हूँ तेरे बारे मैं हर पल
क्यूँ गुजरती है तेरे पहलू में हर रात

---अक्सर सोचता हूँ
मैं तेरा ही एक रूप हूँ !


एक तू है, बावफ़ा
चली आती है हर जगह हर वक़्त
मेरा साथ देने के लिए

एक मैं हूँ, बेवफा
नही चाहता तेरा साथ
यूँ हर जगह हर वक़्त

मैं भी मजबूर हूँ तू भी मजबूर है
मेरा भी तेरे सिवा कोई नही
शायद तेरा भी मेरे सिवा कोई नही

---अक्सर सोचता हूँ
मैं तेरा ही एक रूप हूँ !

मेरी तन्हाई
सिमट जा मेरी बाहों में सदा के लिए
आ मेरी तन्हाई
फैला ये बाहें मुझे आगोश मैं ले - ले

मैं भी वफ़ा करूंगा
दूंगा तेरा साथ
हर जगह हर वक़्त
उम्र भर के लिए !

शुक्रवार, 12 दिसंबर 2008

कोई तो वज़ा है .

हर अंज़ाम से वाकिफ़ हूँ मुझे सब जुर्म पता है !
जलता रहूँ इस आग में यही अब मेरी सज़ा है !!

चाहूँ तो एक पल में ये दूनिया में छोड़ दूँ !
जीता हूँ मगर आज भी ये तेरी रज़ा है !!

माना की मोहब्बत में मज़ा है जीने मरने का !
तुमसा हो जो दिलकश तो अदावत में भी मज़ा है !!

रूह का ज़िस्म से जाना कहते है कज़ा माना !
गुलामों से ज़रा पूछो गुलामी भी तो कज़ा है !!

गुज़रा है कोई तूफां या आगाज़ है आने का !
ख़ामोश समुंदर कि कोई तो वज़ा है !!

शुक्रवार, 5 दिसंबर 2008

राह्-ए-मौहब्बत ~~

कठिन बहुत है प्यार की राहें
तुम ना जाना इन राहों में
जोगी बन के आज भी मजँनू
घूम रहे हैं इन राहों में !

टूटे ख्वाबों के कुछ टुकड़े
बिखरे होंगे इन राहों में
हसरत होंगी पाँव के नीचे
और छाले भी इन राहों में !

पार नदी के खड़ी हुई हैं
कितनी सोहणी इन राहों में
कितने राझें ढूढं रहे हैं
अपनी हीरे इन राहों में !

भूख लगेगी जब-जब पथ में
ठोकर खाना इन राहों में
प्यास तुम्हें जब व्याकुल कर दे
आसूँ पीना इन राहों में !

पहाड़ काटकर नहर बनाते
कितने खुदकश इन राहों में
आग का दरिया इश्क नाम है
कितने डूबे इन राहों में !!