३-४ साल बाद फिर एक बार भावों का ज्वार कुछ
शब्द बहा के लाया है देखते हैं आपको कैसे लगे ?
निर्झर था फिर नदी हुआ में।
और अब सागर जैसा हूँ में।
बरसों बाद मिला वो बोला।
कैसा था और कैसा हूँ में।।
तुम ही कहोगे मिलकर मुझसे।
बिलकुल तेरे जैसा हूँ में।
पढ़ते-पढ़ते खो मत जाना।
पहली चिट्ठी जैसा हूँ में।।
जमी हुई है गर्द समय की।
वर्ना हीरे-मोती जैसा हूँ में।
पीर 'नीर' की जानोगे तुम।
चखकर देखो कैसा हूँ में।।