मंगलवार, 30 सितंबर 2008

वक़्त के मरहम से ..

जब-जब वक़्त बुरा आया रिश्तों को बदलते देखा है !
माया के मोह में लोगों का ईमान बदलते देखा है !!

वक़्त के मरहम से हमने हर ज़ख्म को भरते देखा है !
अंबर से ज़मीं तक हर शय को दुनिया में बदलते देखा है !!

नभ में चमकते तारों को भी टूटके गिरते देखा है !
ख़ाक उड़ी नभ तक पहुँची तक़दीर बदलते देखा है !!

ख़ुशी की चाहत में हमने भी ग़म का मंज़र देखा है !
कुछ बदन चूमती मौजों को तूफां में बदलते देखा है !!

मिलने की चाह में दिलबर से इस नीर ने भी कई रूप धरे !
कभी उड़ के हवा के साथ चला कभी बर्फ़ में ढल के देखा है !!

मुमताज बन के आ ..

तपती हुई धरा हूँ तू बरसात बन के आ !
कमज़ोर हुई नब्ज़ मेरी साँस बन के आ !!

खामोश तरानों की आवाज़ बन के आ !
आ प्यार के इस गीत का तू साज़ बन के आ !

ना सिरही, ना हीर, ना  मुमताज बन के आ !
मेरे हमसफ़र, हमदर्द तू हमराज़ बन के आ !!

मेरे लिए एक बार फिर तू ख़ास बन के आ !
कहता है दिल ए नीर की तू प्यास बन के आ !!

खुदकशी ।

था नशे में वो शज़र
हकीक़तों से बेखबर
वो चाहता था घूमना
आँधियों के साथ उड़के
आसमां में दूर तक !

अपनी जड़ता से दुखी
वो जड़ से द्वंद कर गया
वो चाहता था तोड़ना
रिश्ता जो अटूट था
जड़ से इस ज़मीन का !

पेड़ की नादानी से दुखी
जड़ ज़मी से मिलकर रोती है
खुदकशी कहो या खून इसे
रिश्तों की कीमत होती है !

जड़ ज़मी के बंधन छूट गए
रिश्तों के धागे टूट गए
उड़ना तो दूर उठ भी न सका
आंधी के साथ जब पेड़ गिरा !

आखिरी था वक़्त जब
वो देखता ही रह गया
ना ख़ुद की जड़ को काटना
वो ये ज़हान से कह गया !!


सोमवार, 29 सितंबर 2008

अब तो मैं वो अक्स हूँ !

अब तो मैं वो अक्स हूँ सब हँसते हैं जिसको देखकर !
मर गया वो शख्स जो हँसता था सबको देखकर !!

आशना था वो मेरा हँसता रहा जो देर तक !
अपने खंजर पर लगे मेरे लहू को देखकर !!

बा-खुदा जो आज तक कहते रहे , तुम हो मेरे!
लो फिर गयी उनकी भी नजरें आज हमको देखकर !!

उड़ गए सारे परिंदे देखकर सय्याद को !
हो गए हम क़ैद वो सूरत सलोनी देखकर !!

हैं बहोत मुझसे जहाँ में एक मैं प्यासा नही !
सब्र मैंने भी किया दरिया को प्यासा देखकर !!

दफन था माजी मेरा जो वक़्त की इस रेत में !
सब याद ताजा हो गयी टूटा खिलौना देखकर !!

मौत से कैसी अना एक मौत ही है बावफ़ा !
खुश हुआ 'निर्झर' बहुत आती अज़ल को देखकर !!

हजारों और भी होंगे ...

हजारों गुल यकीनन ही खिले होंगे बहारों में !
तेरे जैसा भी गुल कोई बहारों में नही होगा !!

हजारों और भी होंगे तुझे यूँ चाहने वाले !
मेरे जैसा भी दीवाना हजारों में नही होगा !!

हजारों महफिलें सजती है अम्बर में सितारों की !
तेरे जैसा कोई तारा सितारों में नही होगा !!

हजारों यूँ तो अफसाने लिखे होंगे किताबों में !
मेरी चाहत का अफसाना तेरे दिल पे लिखा होगा !!

हजारों इश्क के नग्मे घुले होंगे फिजाओं में !
एक नीर का नग्मा हजारों में अलग होगा !!

शुक्रवार, 26 सितंबर 2008

टूटा तारा ।

सुना हें
टूटते तारे को देखकर
जो मांगो मिल जाता हैं
मैं भी तो तारा था
किसी की आँख का
मैं भी तो टूटा हूँ
टूट के बिखरा हूँ
अफशोस फिर भी किसी को
कुछ ना दे सका
कैसे ? देता
बिन मांगे
मुझे तो देखा ही नही किसी ने
टूटते बिखरते
कैसे ? देखते
तारे तो रात को टूटते है
मैं तो टूटा हूँ
दिन के उजालों में

रेत जैसे हाथ से यूँ जिंदगी...

रेत जैसे हाथ से यूँ जिंदगी फिसल गयी !
मोम जैसे आग से यूँ ख्वाहिशें पिघल गयी !!

दबे पाँव चोर जैसे श्याह काली रात में !
जिंदगी की हर खुशी यूँ पास से निकल गयी !!

पतंग जैसे आसमां में साथ छोड़ डोर का !
वो हाथ मेरे हाथ से यूँ छोड़ के चली गयी !!

तटबाँध जैसे हर नदी के टूटते हैं बाढ़ में
तेरी याद बाँध शब्र का यूँ तोड़ के चली गयी !!

रिश्ते !


लोग अक्सर मुझपे फिकरे कसते हैं
पडा रहता है टूटी खाट मैं
बुन क्यों नही लेता इसे फिर से
कैसे कहूँ क्यों नही बुन लेता ?
सोचता हूँ तो हाथ कांपने लगते है
ये खाट और रिश्ते मुझे एक से लगते हैं !

मैंने अपने हर नए रिश्ते की तरह
कितने शौक से बुना था हर ताना
कितने सुंदर लगते थे नए-नए !

जिंदगी में हर रिश्ता इस ताने जैसा ही हो गया
दोनों का न जाने कौन सा ताना कब टूट गया
साथ-साथ रहते हुए भी मुझे पता ना चला
धीरे-धीरे एक-एक कर सारे ताने टूट गए !

रह गए कुछ टूटे रिश्ते और टूटे हुए ख्वाब
टूटी हुई खाट के टूटे हुए तानों की तरह !

उलझ गया हूँ इन टूटे हुए रिस्तो में
मैं अब फिर से नही बुनना चाहता
ना किसी रिश्ते को ना ही इस टूटी खाट को !!

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