सोमवार, 29 सितंबर 2008

अब तो मैं वो अक्स हूँ !

अब तो मैं वो अक्स हूँ सब हँसते हैं जिसको देखकर !
मर गया वो शख्स जो हँसता था सबको देखकर !!

आशना था वो मेरा हँसता रहा जो देर तक !
अपने खंजर पर लगे मेरे लहू को देखकर !!

बा-खुदा जो आज तक कहते रहे , तुम हो मेरे!
लो फिर गयी उनकी भी नजरें आज हमको देखकर !!

उड़ गए सारे परिंदे देखकर सय्याद को !
हो गए हम क़ैद वो सूरत सलोनी देखकर !!

हैं बहोत मुझसे जहाँ में एक मैं प्यासा नही !
सब्र मैंने भी किया दरिया को प्यासा देखकर !!

दफन था माजी मेरा जो वक़्त की इस रेत में !
सब याद ताजा हो गयी टूटा खिलौना देखकर !!

मौत से कैसी अना एक मौत ही है बावफ़ा !
खुश हुआ 'निर्झर' बहुत आती अज़ल को देखकर !!

3 टिप्‍पणियां:

shama ने कहा…

Aaj to mai wo aks hun..." pehlee do panktiyan bohot achhee lagee...waise to pooree kavitahee achhee hai..
Anek shubhkamnayen!

रंजना ने कहा…

हैं बहोत मुझसे जहाँ में एक मैं प्यासा नही !
सब्र मैंने भी किया दरिया को प्यासा देखकर !!

आपकी पीड़ा अनुभूती की जो गहन क्षमता है,उसीने आपको रचने के लिए शब्द दिए हैं.इन्हे अपनी ताकत बना लीजिये और इसे ईश्वर का अपने प्रति अपरिमित स्नेह और सौगात मानिये.प्यास बुझ ही जाए तो प्यास की तड़प का अंदाजा कहाँ रह जाता है.पीड़ा जो कुछ सिखा समझा जाती है वह सुख कहाँ दिखा समझा पता है ?पीड़ा/दुःख तोड़ती नही व्यक्तित्व में बहुत कुछ जोड़ जाती है.इसलिए उसे खुश होकर स्वीकार कीजिये. .

prritiy----sneh ने कहा…

bahut hi achha likha hai, sach mein nirjhar behte ho neer ki bhanti.

shubhkamnayen