रविवार, 28 जुलाई 2013

जीना है तो मरना होगा

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पर्वत-पर्वत टूट रहे हैं
घर-द्वारे सब छूट रहे हैं
कैसे उनको इन्सां कह दूँ 
बेबस को जो लूट रहे हैं !

खतरे में अब देश पड़ा है 
देश का नेता मौन खड़ा है
कुछ तो आखिर करना होगा
जीना है तो मरना होगा !

इश्क-मोहब्बत की सौगातें 
कलियाँ-भवरों की ये बातें 
इन बातों का वक़्त नहीं है
जो उबले ना,वो रक्त नहीं है !

धधक रहा था जो भी दिल में 
लावा बन के धिकल रहा है 
पत्थर सा दिल पिघल रहा है 
नीर-नयन से निकल रहा है !!


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