गुरुवार, 30 अप्रैल 2009

कोई दरिया नही हूँ मैं



अब क्या डुबोयेंगीं मुझे
तूफां की ये मौजें
साहिल हूँ समुन्दर का
कोई कस्ती नहीं हूँ मैं !

अब क्या बुझायेंगी मुझे
गम की ये आंधियां
जलता हूँ अनल जैसे
कोई दीपक नहीं हूँ मैं !

ना खौफ रहबरी का
ना डर है दुश्मनों से
अभेद दुर्ग हूँ एक
कोई बस्ती नहीं हूँ मैं !

दरिया को मोड़ने का
रखता हूँ हौसला भी
जरा, लड़ने दे वक़्त से
अभी हारा नहीं हूँ मैं !

मंथन तो कर के देख
अमृत भी मिलेगा
समेटे हूँ मैं सागर को
कोई दरिया नही हूँ मैं !!

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शुक्रवार, 10 अप्रैल 2009

ऊँची-ऊँची चट्टानों से



ऊँची-ऊँची चट्टानों से
'नीर' गिरा निर्झर कहलाया
चोट लगी जो तन-मन मेरे
जग निर्मोही देख ना पाया !

झर-झर,झर-झर बहता जाए
दर्द को अपने सहता जाए
कोई ना जाने पीर पराई
लहू जिस्म का कहता जाए !

मेरे दर पे जो भी आया
मैंने सबको प्यासा पाया
प्यास बुझाई मैंने उसकी
जिसने मुझको गले लगाया !

ना राही ना कोई मंजिल
देख के राहें पग बढ़ जाए
इस जीवन का सार यही है
औरों की खातिर मिट जाए !

दर्द ने मुझको कभी जमाया
कभी जला के भाप बनाया
रंगहीन पानी में सबने
अपना-अपना रंग मिलाया !


बुधवार, 1 अप्रैल 2009

छलक ना जाए लहू

इश्क में फूल चुने थे जो तेरी आंखों से !
बनके अब शूल उगे हैं वो मेरी आंखों से !!

काँप जाती है मेरी रूह वफ़ा की बातों से !
छलक ना जाए लहू दिल का मेरी आंखों से !!

मिलाई तुमसे नज़र हम ये भूल कर बैठे !
छिन गए सारे हसीं ख्वाब मेरी आंखों से !!

है ये हस्ती-ए-ज़ज्बात की आंधी के निशां !
बन के आँसू जो बहे आज मेरी आंखों से !!

लगी थी आग जो दिल में वो बुझा दी मैंने !
फ़िर क्यूँ ? उठता है धुंआ 'नीर' मेरी आंखों से !!