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रोज एक हसरत को दफ़न करता हूँ
रोज आँखें ये नया ख्वाब सज़ा लेती हैं !
रोज दीवार दरकती है मेरे जेहन की
रोज उम्मीदें नयी नीव ज़मा लेती है !
विश्वास में विष का भी वास होता है
आस ही टूटते रिश्तों को बचा लेती है !
ना कीमत-ए-वफ़ा है ना कद्र-ए-मोहब्बत
हसरतें दिल में दिए फिर भी जला लेती हैं !
बचने का हुनर सीख ले अब तो निर्झर
दुनिया अब भी सच को ही सजा देती है !! .......................