बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

रोज आँखें ये नया ख्वाब

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रोज एक हसरत को दफ़न करता हूँ 
रोज आँखें ये नया ख्वाब सज़ा लेती हैं !
रोज दीवार दरकती है मेरे जेहन की
रोज उम्मीदें नयी नीव ज़मा लेती है !
विश्वास में विष का भी वास होता है
आस ही टूटते रिश्तों को बचा लेती है ! 
ना कीमत-ए-वफ़ा है ना कद्र-ए-मोहब्बत
हसरतें दिल में दिए फिर भी जला लेती हैं !
बचने का हुनर सीख ले अब तो निर्झर
दुनिया अब भी सच को ही सजा देती है !!  

 
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गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

कमज़र्फ आँखें

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दिल के सागर में 
जब-जब आते है
ज़ज्बातों के झंझावात
तब-तब उठती हैं 
बेबसी और वेदना की 
ऊँची-ऊँची लहरें
सुनामी की तरह 
जिन्हें ये कमज़र्फ आँखें 
चाहते हुए भी 
रोक नहीं पाती
और बहा देती है
उस नमक को
जो जमा किया था
वक़्त की छलनी से 
दर्द को छानकर
दिल की तलहटी में.


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