बुधवार, 11 अक्तूबर 2017

'निर्झर' को कैसे ख़ार लिखू

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सावन के काले मेघ लिखूं
या सनी खून से तेग लिखूं
सागर में उठी  सुनामी का
लोचन से बहते पानी का
कैसे ? में बोलो वेग लिखूं
ना कलम अभी तक टूटी है
ना सांस अभी तक छूटी है
ये मीत, प्रीत आलिंगन की 
बातें अब लिखी नहीं जाती
जब गली मोहल्ले नुक्कड़ पे 
हो तार-तार माँ की छाती 
क्यूँ खफ़ा हुआ है यार मेरा
खो गया कहाँ वो प्यार तेरा
चेहरे की रंगत बता रही
कोई बात तुझे भी सता रही
'निर्झर' को कैसे ख़ार लिखू
अब तो जीवन का सार लिखूं ।।
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