गुरुवार, 23 अक्तूबर 2008

चाँद की बात चाँद से ...

चाँद की बात चाँद से कर लूँ !
एक हसीं ख़्वाब आँख में भर लूँ !!

चाँद की बात चाँद से कर लूँ .......

चाँद मेरा भी हमसफर होगा !
मैं भी ग़र शब से दोस्ती कर लूँ !!

चाँद की बात चाँद से कर लूँ .......

ए-चाँद ले तो जरा तू भी ओट बादल की !
जुल्फ उसकी मैं हटाने की हिमाकत कर लूँ !!

चाँद की बात चाँद से कर लूँ .......

उतर के देख जरा उनकी छत से आँगन में !
हुस्न से पूछ जरा मैं भी मोहब्बत कर लूँ !!

चाँद की बात चाँद से कर लूँ .......

चुरा के रख लूँ चाँद को सब से !
हरसू बदल की तरह मैं भी अँधेरा कर लूँ

चाँद की बात चाँद से कर लूँ .......

मंगलवार, 21 अक्तूबर 2008

ये इश्क ले आया मुझे ..

जिन आँखों ने तेरे सिवा सपना कोई देखा नही !
तुने उन आँखों से रिसते खूँ को भी देखा नही !!

बेखुदी मेरी कहो या बेसहूरी नाम दो !
मैंने अपने आप को तुझसे ज़ुदा देखा नही !!

एक नज़र ए-बेखबर तू डाल इस फ़कीर पे !
चार-सू नज़रें तेरी बस एक मुझे देखा नही !!

तुने आसमां से टूटते तारों को देखा रोज़ शब !
एक मेरे दिल का टूटना तुने कभी देखा नही !!

ये इश्क ले आया मुझे उस अर्श से इस फर्श पे !
कुछ लोग कहते है दीवाना नीर सा देखा नही !!

गुरुवार, 16 अक्तूबर 2008

मैं हमराज़ हूँ हमदम तेरा ...

ज़र्द चेहरा,आँख वीरां जुल्फ उलझी हैं आज क्यूँ !
नग़मा वही,सरगम वही फ़िर ख़ामोश साज क्यूँ !!

जिस शख्स के दम से थी कभी रौनक-ए-महफिल !
तनहा है वही शख्स भरी महफिल में आज क्यूँ !!


जिन आंखों की मस्ती का दीवाना जहाँ था !
पुरनम है वही आँख महफिल में आज क्यूँ !!

बदला नही है कुछ भी, अम्बर से जमीं तक !
दिल के ये ज़जबात फिर बदले है आज क्यूँ !!


आती नही है लब पे तेरे दिल की बात क्यूँ !
मै हमराज़ हूँ हमदम तेरा हमसे भी राज़ क्यूँ !!


आँखें है झील तेरी दिल तेरा मयकदा है !
पहलू में 'नीर' तेरे, प्यासा है आज क्यूँ !!

बुधवार, 15 अक्तूबर 2008

गाँव का बदलता स्वरूप ।

शहर का ना था रंग जब गाँव में !
बसेरा खुशी का था तब गाँव में !!

झूले ना पनघट ना बच्चों का जमघट !
ना सजती है चौपाल अब गाँव में !!

ना कुस्ती के दंगल ना करतब नटों के !
ना लगते है मेले ही अब गाँव में !!

खेतों में बनते हुए गुड़ की खुशबू !
अब आती कहाँ है किसी गाँव में !!

ना बैलों की जोड़ी ना मिटटी के चूल्हे !
ना छप्पर बचा अब कोई गाँव में !!

ना कुल्हड़ में पानी ना पत्तों पे खाना !
बस है चाय चम्मच ही अब गाँव में !!

ना चाचा ना चाची ना ताऊ ना ताई !
चलन अंकल अंटी का अब गाँव में !!

मंगलवार, 14 अक्तूबर 2008

जगा ज़ज्बा मोहब्बत का ।

बस है सहारे ढूंढना फितरत जमाने की !
सहारे छोड़ तुझको है जरुरत ख़ुद संभलने की !!

गुजर जा गम की राहों से तमन्ना रख उजालों की !
जलाकर ख़ुद को रातों में मिटा दे तू ये तारीकी !!

छोड़ आंसू बहाना और उठा अब तेग हिम्मत की !
देख कदमों में फिर हर शय तेरे होगी जमाने की ! !

पलट माजी के पन्ने को नया इतिहास रचना है !
जगा ज़ज्बा मोहब्बत का गिरा दीवार नफरत की !!

नीर नाकामियों की धूल दामन से झटक दे अब !
बस कुछ कदम तुझसे बची है दूरी मंजिल की !!

बुधवार, 8 अक्तूबर 2008

मैं तो इन्सान था इन्सान हूँ ।

जिंदगी के सफर का
वो मेरा पहला कदम
जब उठा ही था
पथरीले रास्तों पर



याद है मुझे आज भी..
किसी ने ठोकर मारी मुझे पत्थर समझकर
या फिर अनचाहे आ गया उन अनजाने क़दमों में
क्योंकि उसकी निंगाह् थी क्षितिज पर
और मैं सर-ए- राह ज़मीं पर

एक ठोकर क्या लगी सिलसिला बन गया
कोई जाने-अनजाने मारता कोई पत्थर समझकर
हाँ इन ठोकरों में हमने तय कर लिया
पथरीली राहों का एक लंबा रास्ता


याद है मुझे आज भी..
जब किसी ने कहा कितना सुंदर पत्थर है
ख़ुद को मुद्दत बाद देखा तो अहसास हुआ
ठोकरों ने मेरा रूप ही बदल दिया
मुझे सचमुच एक पत्थर बना दिया

कब मैं वक्त के पहिये में इन्सान से पत्थर बना
अपने इस बदलते रूप का मुझे पता भी ना चला
मुझे काट-छाँट कर मूर्तिकार ने एक नया आकार दिया
राम रूप देकर फिर मुझको मन्दिर में स्थान दिया


याद है मुझे आज भी ..
तुम ही तो हो पत्थर समझकर पहली ठोकर मारने वाले
आज भगवान समझकर सबसे पहले मांगने वाले
तुम मुझे तब भी ना जान सके ना आज पहचान सके
कभी पत्थर समझते हो, कभी भगवान

सच तो ये है
मैं ना पत्थर था ना भगवान हूँ
मैं तो इन्सान था
इन्सान हूँ॥

मंगलवार, 7 अक्तूबर 2008

शर्म नहीं आती तुम्हें !

शर्म नहीं आती तुम्हें
चले आते हो बेसबब,बेवक्त
बिन बुलाये मेहमां की तरह
कम-स-कम आने से पहले
कुछ ख़बर तो कर देते !

जानता हूँ ये प्यार है जो खींच लाता है
ऐसा भी नही की मुझे तुझसे प्यार नही
मुझे याद है वो तनहाइयों में तेरा साथ
जो भी गुजरी है तेरे पहलू में मेरी रात !

मुझे अच्छा नहीं लगता ये बेबुनियाद लोग
तुम्हें साथ देखकर मुझपे उंगलियाँ उठायें
मेरी भी इज्जत है इस बिखरे हुए समाज में
क्या तुम्हें खुशी होगी, कोई मुझपे उंगली उठायें !

नहीं ना, मुझे भी नही होती
इसलिए ! आगे से ध्यान रखना
ना आना बेसबब,बेवक्त
कोशिश करना रात को आने की !

मुझे अच्छा लगता है अंधेरों में तेरा साथ
रात में आने का किसी को पता भी नहीं चलता
या फ़िर आना तुम चाँदनी रातों में
चांदनी में भी चाँद के सिवा कोई नहीं देखता

हाँ तुम सावन की रिमझिम में जरूर आना
बरखा की बूंदों के साथ जब तुम बहते हो
तब भी ज़माने की नज़र से दूर रहते हो
ए-आसूँ ,तुम आना,बर्खा में जरूर आना !

क्योंकि ! जब भी तुम आते हो
तुम्हारे सथ लिपटकर
थोड़ा सा दर्द बह जाता है
ज़मी हुई गर्द बह जाती है
मन भी हल्का हो जाता है
आँखें भी उजली हो जाती है !!

शनिवार, 4 अक्तूबर 2008

पी-पी के अश्क आज ...

चढ़ते सूरज को सलामी सब की मिलती है !
अगर ग़र्दिश में हो तारे कोई पानी नही देता !!

जवां जिस्मों की राहों में सभी पलकें बिछाते हैं !
कोई बेबस बुढापे को सहारा क्यों ? नही देता ! !

दौलत के धागों से बँधे हैं अब तो सब रिश्ते !
मुफ़लिस की मय्यत को कोई कंधा नही देता !!

ना कर इंसाफ़ की बातें यहाँ मुजरिम ही मुंसिफ़ है !
यहाँ पर सच्चे लोगों को कोई जीने नही देता !!

पी-पी के अश्क आज तक जीता रहा हूँ मै !
इस प्यासे को 'नीर' भी कोई पीने नही देता ! !

बुधवार, 1 अक्तूबर 2008

क्या बला है इश्क यारो ...

................................................


माँ भारती की वेदना का हाल हमसे पूछ लो !
बोलते पत्थर है ये इन खंडहरों से पूछ लो !!


थी बहारें जिस चमन में , है आज वो उजड़ा हुआ !
उजड़े गुलशन का सबब इन आँधियों से पूछ लो !!


हर कदम पर अब यहाँ हैवानियत का नांच है !
इंसानियत कैसे मरी ये आसमां से पूछ लो !!


ना रही खुशबू हवा में ना गगन में चांदनी !
लुप्त हो गए क्यूँ ? परिंदे ये शज़र* से पूछ लो !!


ना रही अब प्रीत जग में ना वफ़ा के मायने !
क्या बला है इश्क यारो दिलजलों से पूछ लो !!


अपनी सारी उम्र तो बस बेखुदी में कट गयी !
मंजिलों का तुम पता इन रास्तों से पूछ लो !!


क्या बताएं ? नीर का भी रंग अब बदला सा है !
हो गयी गंगा भी मैली उस शहर से पूछ लो !!

* शज़र -पेड़