मंगलवार, 14 अक्टूबर 2008

जगा ज़ज्बा मोहब्बत का ।

बस है सहारे ढूंढना फितरत जमाने की !
सहारे छोड़ तुझको है जरुरत ख़ुद संभलने की !!

गुजर जा गम की राहों से तमन्ना रख उजालों की !
जलाकर ख़ुद को रातों में मिटा दे तू ये तारीकी !!

छोड़ आंसू बहाना और उठा अब तेग हिम्मत की !
देख कदमों में फिर हर शय तेरे होगी जमाने की ! !

पलट माजी के पन्ने को नया इतिहास रचना है !
जगा ज़ज्बा मोहब्बत का गिरा दीवार नफरत की !!

नीर नाकामियों की धूल दामन से झटक दे अब !
बस कुछ कदम तुझसे बची है दूरी मंजिल की !!

1 टिप्पणी:

रंजना ने कहा…

बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रेरक पंक्तियाँ हैं..आभार