मंगलवार, 17 अगस्त 2010

वक़्त की ताल पे...............

.

वक़्त की ताल पे रक्स करता रहा
अश्क पी-पी के जख्मों को भरता रहा !

थोड़ा जीता रहा थोड़ा मरता रहा
मौत की राह में, खेल करता रहा !

नट की रस्सी के जैसी है ये ज़िन्दगी
नट के जैसे, में रस्सी पे चलता रहा !

उसकी नज़रों ने, मेरी कसम तोड़ दी 
मैं तो पीने से, तौबा ही करता रहा !

नफ़स चलती रही आह भरता रहा    
ज़िगर में कहीं ज़र्फ़ पलता रहा !

वक़्त को सर झुका, मुद्दई मर चुका
मुकद्दमा मगर फिर भी चलता रहा !

रात भर बांम पर दीप जलता रहा
चाँद भी अब्र की ओट चलता रहा !

ज़ीस्त क्या है, फकत मौत तक का सफ़र
मैं तो नाहक ही मंजिल से डरता रहा !
................................................
रक्स...............नाँच
ज़र्फ़  ..............सहनशक्ति 

.................................................