वक़्त की ताल पे रक्स करता रहा
अश्क पी-पी के जख्मों को भरता रहा !
थोड़ा जीता रहा थोड़ा मरता रहा
मौत की राह में, खेल करता रहा !
नट की रस्सी के जैसी है ये ज़िन्दगी
नट के जैसे, में रस्सी पे चलता रहा !
उसकी नज़रों ने, मेरी कसम तोड़ दी
उसकी नज़रों ने, मेरी कसम तोड़ दी
मैं तो पीने से, तौबा ही करता रहा !
नफ़स चलती रही आह भरता रहा
ज़िगर में कहीं ज़र्फ़ पलता रहा !
वक़्त को सर झुका, मुद्दई मर चुका
मुकद्दमा मगर फिर भी चलता रहा !
रात भर बांम पर दीप जलता रहा
चाँद भी अब्र की ओट चलता रहा !
ज़ीस्त क्या है, फकत मौत तक का सफ़र
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रक्स...............नाँच
ज़र्फ़ ..............सहनशक्ति
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