इतना तो मुझको भी मालूम था साथ साया अंधेरों में रहता नहीमेरे सरपे था सूरज चमकता हुआमगर मेरे क़दमों में साया ना था । बन के मैं जोगी भटकता रहाजिगर में कहीं दर्द पलता रहासिसकता रहा आह भरता रहा बेखुद था क्या-क्या मैं करता रहा !रूह बेचैन है दिल भी मजबूर हैअब तो, ये चेहरा भी बे-नूर हैआखिरी वक़्त है अब जवां दर्द हैजिंदगी क़र्ज़ थी जिंदगी क़र्ज़ है । .......................................