रविवार, 28 जुलाई 2013

जीना है तो मरना होगा

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पर्वत-पर्वत टूट रहे हैं
घर-द्वारे सब छूट रहे हैं
कैसे उनको इन्सां कह दूँ 
बेबस को जो लूट रहे हैं !

खतरे में अब देश पड़ा है 
देश का नेता मौन खड़ा है
कुछ तो आखिर करना होगा
जीना है तो मरना होगा !

इश्क-मोहब्बत की सौगातें 
कलियाँ-भवरों की ये बातें 
इन बातों का वक़्त नहीं है
जो उबले ना,वो रक्त नहीं है !

धधक रहा था जो भी दिल में 
लावा बन के धिकल रहा है 
पत्थर सा दिल पिघल रहा है 
नीर-नयन से निकल रहा है !!


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5 टिप्‍पणियां:

अनुपमा पाठक ने कहा…

स्थिति तो भयावह है ही...
हमें प्रतिबद्धता के साथ सामना करना है!

सुन्दर लेखन!

vijay kumar sappatti ने कहा…

बहुत दिन बाद आपके घर आया हूँ ,. माफ़ी चाहूँगा , लेकिन जब ये पोस्ट पढ़ी तो दिल खुश हो गया ....
वाह भाई वाह . सही कहा है आपने . देश के हाला और मन के हाल को मिक्स करके बहुत कुछ कह गए ..

दिल से बधाई स्वीकार करे.

विजय कुमार
मेरे कहानी का ब्लॉग है : storiesbyvijay.blogspot.com

मेरी कविताओ का ब्लॉग है : poemsofvijay.blogspot.com

Smart Indian ने कहा…

दुखद किन्तु सत्य!

prritiy----sneh ने कहा…

इश्क-मोहब्बत की सौगातें
कलियाँ-भवरों की ये बातें
इन बातों का वक़्त नहीं है
जो उबले ना,वो रक्त नहीं है !


waah bahut hi khoob, sangeetmay rachna.

shubhkamnayen

जयंत - समर शेष ने कहा…

"कुछ तो आखिर करना होगा जीना है तो मरना होगा !"

अति सुन्दर है.... मान गए इस पंक्ति को!!