…………………………
पर्वत-पर्वत टूट रहे हैं
घर-द्वारे सब छूट रहे हैं
कैसे उनको इन्सां कह दूँ
बेबस को जो लूट रहे हैं !
खतरे में अब देश पड़ा है
देश का नेता मौन खड़ा है
कुछ तो आखिर करना होगा
जीना है तो मरना होगा !
इश्क-मोहब्बत की सौगातें
कलियाँ-भवरों की ये बातें
इन बातों का वक़्त नहीं है
जो उबले ना,वो रक्त नहीं है !
धधक रहा था जो भी दिल में
लावा बन के धिकल रहा है
पत्थर सा दिल पिघल रहा है
नीर-नयन से निकल रहा है !!
..................................................
5 टिप्पणियां:
स्थिति तो भयावह है ही...
हमें प्रतिबद्धता के साथ सामना करना है!
सुन्दर लेखन!
बहुत दिन बाद आपके घर आया हूँ ,. माफ़ी चाहूँगा , लेकिन जब ये पोस्ट पढ़ी तो दिल खुश हो गया ....
वाह भाई वाह . सही कहा है आपने . देश के हाला और मन के हाल को मिक्स करके बहुत कुछ कह गए ..
दिल से बधाई स्वीकार करे.
विजय कुमार
मेरे कहानी का ब्लॉग है : storiesbyvijay.blogspot.com
मेरी कविताओ का ब्लॉग है : poemsofvijay.blogspot.com
दुखद किन्तु सत्य!
इश्क-मोहब्बत की सौगातें
कलियाँ-भवरों की ये बातें
इन बातों का वक़्त नहीं है
जो उबले ना,वो रक्त नहीं है !
waah bahut hi khoob, sangeetmay rachna.
shubhkamnayen
"कुछ तो आखिर करना होगा जीना है तो मरना होगा !"
अति सुन्दर है.... मान गए इस पंक्ति को!!
एक टिप्पणी भेजें