२६ जनवरी २०१४ एक काव्य गोस्ठी में युवा ओज कवि प्रख्यात मिश्रा को सुनकर मैंने भी कुछ ओज लिखने की कोशिश की है,अपने शब्दों से अनुग्रहित करें।
जयचंदों की कमी नही माँ , माना मेरे देश में ।
राणा और शिवाजी भी तो, बसते हैं इस देश में ।
दुश्मन का सर काट-काट माँ, ढेरों-ढेर लगा देंगे ।
बन बिस्मिल, शेखर,भगतसिंह माँ, चरणों शीश चढ़ा देंगे ।
दिल से गले मिलोगे तो हम, बाँहों में भी भर लेंगे ।
ग़र भारत के सर पर बैठे तो, कुरुकक्षेत्र भी कर लेंगे ।
ओढ़ भेड़ कि खाल भेड़िये, बैठे है कुछ देश में ।
कुछ गद्दार छुपे बैठे हैं, नेताओं के भेष में ।
वीर सपूतों के आगे कोई दुश्मन टिक नहीं पायेगा ।
लेकिन इन गद्दारों से इस देश को कौन बचाएगा ?
इस देश को कौन बचाएगा ? इस देश को कौन बचाएगा ?
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9 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर भावों को शब्दों में पिरोया है आपने कौशल कानूनी ज्ञान
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (29-01-2014) को वोटों की दरकार, गरीबी वोट बैंक है: चर्चा मंच 1507 में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
bilkul sahi or satik shabd me sachai hai ye kavita ............bhot achhe...
bahut khoob likha hai, sach kon bachayega ...
shubhkamnayen
ओज़स्वी रचना ... लाजवाब रचना ...
देश को बचाने के लिए सक्रिय हो कर सामने आना पड़ेगा-देश के लगों को नींद से झकझोर कर जगाना पड़ेगा!
देशभक्त ही देश को गद्दारों से बचा सकता है ।
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"ओढ़ भेड़ कि खाल भेड़िये, बैठे है कुछ देश में
कुछ गद्दार छुपे बैठे हैं, नेताओं के भेष में "
वाह वाऽह…!
लाजवाब !!
अच्छी ओजमयी रचना है निर्झर नीर जी
बहुत बहुत शुभकामनाएं !
आने वाला वर्ष इस वर्ष से भी ज़्यादा यादगार बने...
बहुत बढिया लिखा है। बढिया रचना।
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