शुक्रवार, 26 सितंबर 2008

रेत जैसे हाथ से यूँ जिंदगी...

रेत जैसे हाथ से यूँ जिंदगी फिसल गयी !
मोम जैसे आग से यूँ ख्वाहिशें पिघल गयी !!

दबे पाँव चोर जैसे श्याह काली रात में !
जिंदगी की हर खुशी यूँ पास से निकल गयी !!

पतंग जैसे आसमां में साथ छोड़ डोर का !
वो हाथ मेरे हाथ से यूँ छोड़ के चली गयी !!

तटबाँध जैसे हर नदी के टूटते हैं बाढ़ में
तेरी याद बाँध शब्र का यूँ तोड़ के चली गयी !!

2 टिप्‍पणियां:

रंजना ने कहा…

मेरी दुआ है कि जिसका मन आपके मन सा पाक साफ़ हो उसे ईश्वर आपके जीवन में सौगात रूप में दें.

निर्झर'नीर ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.