तपती हुई धरा हूँ तू बरसात बन के आ !
कमज़ोर हुई नब्ज़ मेरी साँस बन के आ !!
खामोश तरानों की आवाज़ बन के आ !
आ प्यार के इस गीत का तू साज़ बन के आ !
ना सिरही, ना हीर, ना मुमताज बन के आ !
मेरे हमसफ़र, हमदर्द तू हमराज़ बन के आ !!
मेरे लिए एक बार फिर तू ख़ास बन के आ !
कहता है दिल ए नीर की तू प्यास बन के आ !!
कमज़ोर हुई नब्ज़ मेरी साँस बन के आ !!
खामोश तरानों की आवाज़ बन के आ !
आ प्यार के इस गीत का तू साज़ बन के आ !
ना सिरही, ना हीर, ना मुमताज बन के आ !
मेरे हमसफ़र, हमदर्द तू हमराज़ बन के आ !!
मेरे लिए एक बार फिर तू ख़ास बन के आ !
कहता है दिल ए नीर की तू प्यास बन के आ !!
2 टिप्पणियां:
तपती हुई धरा हूँ तू बरसात बन के आ !
कमज़ोर हुई नब्ज़ मेरी साँस बन के आ !!
waah lajawaab..bahut bahut sundar.
kya bat kahi hai aapne hamare pas to shabd hi nahi hai kuch kahen ko
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