३-४ साल बाद फिर एक बार भावों का ज्वार कुछ
शब्द बहा के लाया है देखते हैं आपको कैसे लगे ?
निर्झर था फिर नदी हुआ में।
और अब सागर जैसा हूँ में।
बरसों बाद मिला वो बोला।
कैसा था और कैसा हूँ में।।
तुम ही कहोगे मिलकर मुझसे।
बिलकुल तेरे जैसा हूँ में।
पढ़ते-पढ़ते खो मत जाना।
पहली चिट्ठी जैसा हूँ में।।
जमी हुई है गर्द समय की।
वर्ना हीरे-मोती जैसा हूँ में।
पीर 'नीर' की जानोगे तुम।
चखकर देखो कैसा हूँ में।।
8 टिप्पणियां:
तुम ही कहोगे मिलकर मुझसे।
बिलकुल तेरे जैसा हूँ में।
पढ़ते-पढ़ते खो मत जाना।
पहली चिट्ठी जैसा हूँ में।।
..बहुत सुन्दर
बहुत सार्थक सृजन।
निर्झर और नीर एकदम विपरीत अर्थ किन्तु एक दूसरे के पूरक भी।
बहुत बढ़िया!
निर्झर था फिर नदी हुआ में।
और अब सागर जैसा हूँ में।
बरसों बाद मिला वो बोला।
कैसा था और कैसा हूँ में।।
बहुत ही सुन्दर लिखा है ! धन्यवाद। Visit Our Blog
Really great article, Glad to read the article. It is very informative for us. Thanks for posting.
अच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
greetings from malaysia
द्वारा टिप्पणी: muhammad solehuddin
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Good article! Please visit us Kabar UMJ
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