---अक्सर सोचता हूँ
मैं तेरा ही एक रूप हूँ !
तू भी अकेली है
में भी अकेला हूँ
तुझे भी तलाश है एक आशियाँ की
मुझे भी तलाश है एक अजनबी की
---अक्सर सोचता हूँ
मैं तेरा ही एक रूप हूँ !
यकीनन तुझे मोहब्बत है मेरे वजूद से
तू चाहती है मेरा साथ उम्र भर के लिए
-------शायद मैं भी चाहता हूँ तुझे
वरना क्यूँ ? घंटों बातें करता तुझसे
क्यूँ ? सोचता हूँ तेरे बारे मैं हर पल
क्यूँ गुजरती है तेरे पहलू में हर रात
---अक्सर सोचता हूँ
मैं तेरा ही एक रूप हूँ !
एक तू है, बावफ़ा
चली आती है हर जगह हर वक़्त
मेरा साथ देने के लिए
एक मैं हूँ, बेवफा
नही चाहता तेरा साथ
यूँ हर जगह हर वक़्त
मैं भी मजबूर हूँ तू भी मजबूर है
मेरा भी तेरे सिवा कोई नही
शायद तेरा भी मेरे सिवा कोई नही
---अक्सर सोचता हूँ
मैं तेरा ही एक रूप हूँ !
आ मेरी तन्हाई आ
सिमट जा मेरी बाहों में सदा के लिए
आ मेरी तन्हाई आ
फैला ये बाहें मुझे आगोश मैं ले - ले
मैं भी वफ़ा करूंगा
दूंगा तेरा साथ
हर जगह हर वक़्त
उम्र भर के लिए !
एहसास
5 हफ़्ते पहले
5 टिप्पणियां:
"आ मेरी तन्हाई आ
सिमट जा मेरी बाहों में सदा के लिए
आ मेरी तन्हाई आ
फैला ये बाहें मुझे आगोश मैं ले - ले"
तन्हाई से इतना प्यार क्यों कर रहे हो साहब ?
bahut khub
बेहतरीन रचना...सुंदर शब्द...वाह.
नीरज
जीवन की िविवध िस्थितयों को सुंदरता से शब्दबद्ध किया है । अच्छा िलखा है आपने । भाव और िवचारों का अच्छा समन्वय है । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख िलखा है-आत्मिवश्वास के सहारे जीतें िजंदगी की जंग-समय हो तो पढें और प्रितिक्रया भी दें-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
sachmuch is sa vafadaar aur koi nahi hota.
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