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आदत सी पड़ गयी है जीने की ग़लतफ़हमी में !
दिल बहल जाये, गलत क्या है ग़लतफ़हमी में !!
तारे फ़लक से तोड़ के लाया है भला कौन !
प्यार में यूँ भी जिए लोग ग़लतफ़हमी में !!
कहा ये किसने, गलत ग़म शराब करती है !
उम्र भर पीते रहे, हम भी ग़लतफ़हमी में !!
हाथ वो छोड़ भी सकता है बीच धारा में !
ये तो सोचा ही नहीं हमने ग़लतफ़हमी में !!
वक़्त ठहरा है कहाँ कब मौत ने मोहलत दी है !
'नीर' जीवन ही गंवा बैठे ग़लतफ़हमी में !! ................................................