बहना है सबको इसमें
बेबस बुझा- बुझा सा
तनहा मैं बह रहा हूँ !
न बस में पकड़ सकूं
उस कारवाँ को मैं
उड़ती है जिसकी राह में
गर्द -ए-सफर अभी तक !
ना हक है रुक के राह में
करूँ उसका इंतजार
आएगा मेरे बाद जो
तनहा मेरी तरह !
वक़्त-ए-सफर अलग है
सबकी राह-ए-जिंदगी का
मंजिल है सबकी एक
मुझे बस इतनी ख़बर है !!
7 टिप्पणियां:
अच्छी भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
भावुक और मार्मिक अभिव्यक्ति...अंतिम पंक्तियों में चिरसत्य को सुन्दरता से विवेचित किया है. सुन्दर रचना....
bahut sundar bhav
बहुत सुन्दर लिखा है...बधाई
नीरज
अच्छा लिखा है।
आपसे मिलना तो मेरा सौभाग्य होता. खैर, अप्रेल में वापस लौटते फिर ग्रेटर नोयडा आना होगा. उस वक्त मुलाकात अवश्य होगी. अनेक शुभकामनाऐं. अपना फोन न्म्बर मुझे ईमेल से भेज दें:
sameer.lal एट gmail.com
बहुत सुंदर !
घुघूती बासूती
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