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अब क्या डुबोयेंगीं मुझे तूफां की ये मौजें साहिल हूँ समुन्दर का कोई कस्ती नहीं हूँ मैं !अब क्या बुझायेंगी मुझे गम की ये आंधियां जलता हूँ अनल जैसे कोई दीपक नहीं हूँ मैं !ना खौफ रहबरी काना डर है दुश्मनों से अभेद दुर्ग हूँ एक कोई बस्ती नहीं हूँ मैं !दरिया को मोड़ने का रखता हूँ हौसला भी जरा, लड़ने दे वक़्त से अभी हारा नहीं हूँ मैं !मंथन तो कर के देख अमृत भी मिलेगा समेटे हूँ मैं सागर को कोई दरिया नही हूँ मैं !!..
16 टिप्पणियां:
Kyaa baat hai..
Aanand hi aanand..
~Jayant
भाई वाह ...मजा आ गया ....
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
neer....bahut sundar likha hai
वाह बहुत बढ़िया लिखा है।
घुघूती बासूती
manthan to karke dekh................dariya nahin hun main. bahut sunder panktian. umda ra
chna ke liye nirjhar ji badhai.
सुन्दर प्रस्तुति। कहते हैं कि-
तूफान से गुजरकर बहुत मुतमइन थे हम।
साहिल पे डूब जायेगी कश्ती खबर न थी।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
आपकी लेखनी बहुत पसंद आयी।
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चाँद, बादल और शाम
दरिया को मोड़ने का
रखता हूँ हौसला भी
जरा, लड़ने दे वक़्त से
अभी हारा नहीं हूँ मैं !
waah bahut hi khubsurat,aashawadi.
बहुत बढ़िया.
सुंदर रचना ..
बीर रस से ओत-प्रोत सुन्दर , प्रेरक जोश का सन्देश देती कविता.
बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
हौसला बढाती हुई सी सुन्दर कविता !!!
Motivating !!
thanx for being my follower...
har baar ki tarah aapne is baar bhi accha likha hai.
neer
hamesha hi apka likha pasand aata hai hame to..is bara bhi bhaut achi joshili rachna laye
acha laga
sakhi
बहुत खूब कहा है आपने। दरिया की ही तरह अपने भावों को सहज रूप में बहा दिया है।
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TSALIIM
SBAI
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