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मैं हर रोज एक हसरत को दफ़न करता हूँ।
रोज आँखें क्यूँ ? नया ख्वाब सजा लेती हैं॥
रोज गिरती है दर-ओ-दीवार मकां की मेरे।
उम्मीदें फ़िर उसी घर को क्यूँ? बना देती है॥
रोज चूल्हे की तरह जलते हैं दिल में अरमां।
दिल क्यूँ? उसी आग के शोलों को हवा देता है ॥
यहाँ ना कद्र मोहब्बत की ना कीमत है वफ़ा की !
'नीर' क्यूँ? रोज नए रिश्तों को बना लेता है॥ .....................................................................
14 टिप्पणियां:
इसी को तो उम्मीद कहते है ,
हस्ती मिट जाती है पर उम्मीद नहीं मिटती.
सोचा था सब कुछ भुला देंगे हम ,
कमवक़्त इस दिल से तेरे महोब्बत नहीं मिटती.
bhut hi acchi rachna dil ko chhu gai
कुछ बात है की हस्ती मिटती नहीं हमारी...
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ऐ-जहां हमारा...
बहुत सुन्दर रचना..
भाई येही तो जीवन की विशेषता है... :)
~जयंत
यही जीवन है..बेहतरीन चित्रण.
yahan na kadra.................
bahut umda sher . badhai.
यही तो जीवन है निर्झर साहब.............आँखों में नए नए ख्वाब सज जाते हैं.........नयी नयी उम्मीदें बन जाती हैं .....सुन्दर रचना
jeevan asha nirasha ke thapedon mein joojhte huye hi to apna maqsad khoj pata hai
achchi tarah rakh paye hain aap apni baat ko.
दिल के जज्बात को आपने बखूबी बयां किया है। गजल सच में निर्झर की झर रही है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
waah !! bahut bahut sundar rachna....
peeda aur samvednaon ko mukhar abhivyakti dene me tum siddh hast ho...
badhai.
Dil kyu aag ke sholo ko hawa deta hai
wah kamaal kaha hai
aap hamesha bahut achha likhte hain
shri neer ji
aapne bahut acchi gazal likhi hai .. man aur dimaag dono ko prabhavit karti hui..
badhai sweekar karen..
namaskar ,
meri nayi kavita " tera chale jaana " aapke pyaar aur aashirwad bhare comment ki raah dekh rahi hai .. aapse nivedan hai ki padhkar mera hausala badhayen..
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html
aapka
vijay
... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति।
Sirf yahee rachanaa nahee, "Hai qarz us shaheed kaa", yebhee behad sundar hai..
waise sabhi rachnayen sundar hotee hain aapki...
Yaheense "bhatkaa raahee" bhi padh lee..haan, sach gar ek jugnu bhee saath de, to manzil dhoond len hambhi..!
"Manzilonki kamee to nahee, jugnu hain, ki nazar aate nahee...!"
नीर जी
अरसे बाद अच्छी गज़ल से रूबरु हुआ. बहुत अच्छा लगा.
बधाई
आंखो का काम ही है ख्वाब सजाना --- इन्हे दफन न होने दे.
सुन्दर रचना
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