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चाँद माना धरा से बहुत दूर है !
चांदनी ये मगर कब कहाँ दूर है !!
भटकता फिरूं में यहाँ से वहां !
ऱब इन्सान से कब कहाँ दूर है !!
किसी के लिए मांग मन से दुआ !
दुआ से असर कब कहाँ दूर है !!
ये माना तू मुझसे बहुत दूर है !
ऱब इन्सान से कब कहाँ दूर है !!
किसी के लिए मांग मन से दुआ !
दुआ से असर कब कहाँ दूर है !!
ये माना तू मुझसे बहुत दूर है !
दिल ये मगर कब कहाँ दूर है !!
मिलते नहीं दो किनारे तो क्या !
बीच धारा बहे फिर कहाँ दूर है !!
स्याह काली सही रात ढल जाएगी !
सुबह रात से कब कहाँ दूर है !!
जला तो सही 'नीर' शम्म ए कलम !
कलम हाथ से कब कहाँ दूर है !!
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25 टिप्पणियां:
चाँद दूर है लेकिन चाँदनी हमें मिल रही है, अतः यह हमेशा पास दिखता है. उम्दा प्रयास, शुभकामनाएँ। अवधेश पाण्डेय
वाह...लाजवाब !!!!
बहुत ही सुन्दर....
सभी शेर मन को छूने वाले...
मिलते नहीं दो किनारे तो क्या !
बीच धारा बहे फिर कहाँ दूर है !!
बहुत खूबसूरत गज़ल ...
बहुत सुंदर रचना, धन्यवाद
भटकता फिरूं में यहाँ से वहां !
ऱब इन्सान से कब कहाँ दूर है !!
किसी के लिए मांग मन से दुआ !
दुआ से असर कब कहाँ दूर है !!
Ekek lafz chuninda! Harek pankti ekse badhke ek!
भटकता फिरूं में यहाँ से वहां !
ऱब इन्सान से कब कहाँ दूर है !!
Waah waah waah...
Kyaa baat hai..
Man ko chhu gayee..
Jayant Chaudhary
स्याह काली सही रात ढल जाएगी !
सुबह रात से कब कहाँ दूर है !!
जला तो सही 'नीर' शम्म ए कलम !
कलम हाथ से कब कहाँ दूर है !!
वाह वाह लाजबाब शेर. बहुत उम्दा. बधाई.
मिलते नहीं दो किनारे तो क्या !
बीच धारा बहे फिर कहाँ दूर है !!
बहुत सुन्दर निर्झर जी ..आपके नाम के अनुरूप आपकी कलम भी निर्झर चलती है…
badhiyaa bahut hi badhiyaa
भटकता फिरूं में यहाँ से वहां !
ऱब इन्सान से कब कहाँ दूर है ...
सच कहा है ... रब तो इंसान के अंदर ही है ... उसे तो पाना होता है ... भटकने से वो कहाँ मिलता है ....
लाजवाब शेर हैं सब इस ग़ज़ल में ....
बहुत खूब भैया .....शुभकामनायें !
achchhe bhav....
sundar prastuti...
wah neer ji...sach me bhavon ka nirjhar jharna khub bahaya....badhayi sweekare..
बहुत सुन्दर!
सुन्दर प्रस्तुति.
सादर
श्यामल सुमन
+919955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
किसी के लिए मांग मन से दुआ !
दुआ से असर कब कहाँ दूर है !!
bahut sunder bhaav liye rachna.
shubhkamnayen
Bahut khoob....behad Umda...Badhaai!
खूबसूरत गज़ल ....
सोंचने को मजबूर करती रचना ...बधाई आपको !
जय हो सर जी
क्या खूब गज़ल कही है , कुछ शेर तो सीधे दिल में बस गए और यादो को दस्तक दे गए .. बधाई हो ...
आभार
विजय
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ये माना तू मुझसे बहुत दूर है !
दिल ये मगर कब कहाँ दूर है !!
mobile chat facebook ye door rahne kahan dete hain???? :)
achhi rachna....
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बहुत सुन्दर!
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