सोमवार, 12 दिसंबर 2011

गधों के सर पे ताज


एक नयी कोशिश की है .....मार्गदर्शन करें !

१..............................................
धनुष बनाया धर्म का, जात-पात के तीर !
ब्रह्मास्त्र से कम नहीं, ये घाव करे गंभीर !
घाव करे गंभीर, बचोगे कब तक प्यारे !
ये सब-कुछ लेंगे लूट, करेंगे वारे-न्यारे !
कह निर्झर कविराय, नींद से अब तो जागो !
कुछ कर्ज शहीदों का है, उससे यूँ ना भागो !!


२. ...........................................

कहाँ चिरैया सोने की, है यहाँ बाज़ का राज !
लोकतंत्र में भी होता है, गधों के सर पे ताज !
गधों के सर पे ताज, मरे सब बारी-बारी !
गद्दी पर बैठे हैं, जब-जब अत्याचारी !
कह निर्झर कविराय, सुनो संतों की वाणी !
मत बेचो दीन-इमान, करो ना यूँ मनमानी !!

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18 टिप्‍पणियां:

shikha varshney ने कहा…

जबर्दस्त्त ...देखन में छोटे लगे घाव करे गंभीर.

kshama ने कहा…

Wah! Ekdam kamyaab koshish hai!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

kam shabdon mein badi baat

Khare A ने कहा…

badiya hai kaviraaj nirjhar ji!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

उत्तम प्रयास ... कुंडली छंद में जिस शब्द से आप लिखना प्रारम्भ करते हैं उसी पर अंत होता है ..

gyaneshwaari singh ने कहा…

bahaut khub naya andaaz

Monika Jain ने कहा…

Bahut Badiya...naya prayas bahut pasand aaya.
mere blog par bhi aapka swagat hai :)

Satish Saxena ने कहा…

वाह कविराज वाह ...
सही कही आपने !
आभार !

Ruchi Jain ने कहा…

Apne bahut kuch abhivyaqt kar dia kavita mai,, nice.

रंजना ने कहा…

वाह...यह तो अभिनव प्रयोग किया तुमने...

बहुत ही अच्छे बन पड़े हैं सभी के सभी...

कीप इट अप...

लगे रहो, छोड़ना मत कलम...

शुभकामनाएं...शुभाशीष !!!

amrendra "amar" ने कहा…

bahut sunder prastuti..........

Rakesh Kumar ने कहा…

वाह! बहुत सुन्दर.

नववर्ष की आपको बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ.

समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,जी.

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

नव वर्ष मंगलमय हो ..
बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनायें

mridula pradhan ने कहा…

ek se badhkar ek......

Udan Tashtari ने कहा…

बढ़िया कुंडली की तर्ज सजाई है...बधाई...और लिख डालिये इसी धार पर.

रंजना ने कहा…

बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रयास है..

जब किसी कलमकार को भी यह कहते सुनती हूँ कि "राजनीती-छिः", मुझे इससे कोई मतलब नहीं ..तो लगता है यह कैसी चेतना और संवेदना है, जो अपनी मातृभूमि की दुर्दशा नहीं महसूस सकती,उसके लिए उद्वेलित नहीं होती..?? जब कोई आपके घर को लूट रहा हो, वह समय भी क्या इन सब से आँखें मूँद प्रेमगीत लिखने का होता है..??

तुम्हारी इस चेतना ने मुझे अपार हर्षित किया...

prritiy----sneh ने कहा…

waah! Kya baat hai. sunder, lay se paripoorna rachnayen.

shubhkamnayen

एहसास ने कहा…

wakyee chhand..bade kamaal k likhe hain..

Ehsaas....