एक नयी कोशिश की है .....मार्गदर्शन करें !
१..............................................धनुष बनाया धर्म का, जात-पात के तीर !
ब्रह्मास्त्र से कम नहीं, ये घाव करे गंभीर !
घाव करे गंभीर, बचोगे कब तक प्यारे !
ये सब-कुछ लेंगे लूट, करेंगे वारे-न्यारे !
कह निर्झर कविराय, नींद से अब तो जागो !
कुछ कर्ज शहीदों का है, उससे यूँ ना भागो !!
२. ...........................................
कहाँ चिरैया सोने की, है यहाँ बाज़ का राज !
लोकतंत्र में भी होता है, गधों के सर पे ताज !
गधों के सर पे ताज, मरे सब बारी-बारी !
गद्दी पर बैठे हैं, जब-जब अत्याचारी !
कह निर्झर कविराय, सुनो संतों की वाणी !
मत बेचो दीन-इमान, करो ना यूँ मनमानी !!
18 टिप्पणियां:
जबर्दस्त्त ...देखन में छोटे लगे घाव करे गंभीर.
Wah! Ekdam kamyaab koshish hai!
kam shabdon mein badi baat
badiya hai kaviraaj nirjhar ji!
उत्तम प्रयास ... कुंडली छंद में जिस शब्द से आप लिखना प्रारम्भ करते हैं उसी पर अंत होता है ..
bahaut khub naya andaaz
Bahut Badiya...naya prayas bahut pasand aaya.
mere blog par bhi aapka swagat hai :)
वाह कविराज वाह ...
सही कही आपने !
आभार !
Apne bahut kuch abhivyaqt kar dia kavita mai,, nice.
वाह...यह तो अभिनव प्रयोग किया तुमने...
बहुत ही अच्छे बन पड़े हैं सभी के सभी...
कीप इट अप...
लगे रहो, छोड़ना मत कलम...
शुभकामनाएं...शुभाशीष !!!
bahut sunder prastuti..........
वाह! बहुत सुन्दर.
नववर्ष की आपको बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,जी.
नव वर्ष मंगलमय हो ..
बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनायें
ek se badhkar ek......
बढ़िया कुंडली की तर्ज सजाई है...बधाई...और लिख डालिये इसी धार पर.
बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रयास है..
जब किसी कलमकार को भी यह कहते सुनती हूँ कि "राजनीती-छिः", मुझे इससे कोई मतलब नहीं ..तो लगता है यह कैसी चेतना और संवेदना है, जो अपनी मातृभूमि की दुर्दशा नहीं महसूस सकती,उसके लिए उद्वेलित नहीं होती..?? जब कोई आपके घर को लूट रहा हो, वह समय भी क्या इन सब से आँखें मूँद प्रेमगीत लिखने का होता है..??
तुम्हारी इस चेतना ने मुझे अपार हर्षित किया...
waah! Kya baat hai. sunder, lay se paripoorna rachnayen.
shubhkamnayen
wakyee chhand..bade kamaal k likhe hain..
Ehsaas....
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