मंगलवार, 5 अप्रैल 2016

मील का पत्थर


तेरे जैसे कितने आये ,
जाने कितने आएंगे ,
दौड़ते चलते खिचड़ते , 
कितने ही मिल जायेंगे , 
राजा हो रंक सबके ,
नक्श-ए-पां  रह जायेंगे । 

तुझसे पहले मैं यहाँ था ,
बाद भी तेरे रहूँगा ,
साथ रहकर भी तुम्हारे ,
दूर तुमसे मैं रहूँगा ,
दर्द दिल में,हैं बहुत से ,
हँस के मैं सारे सहूंगा ।

पूछते हैं लोग मुझसे ,
मंजिलों के रास्ते ,
थक-हार के बैठा कोई ,
क्यूँ रहगुज़र के वास्ते ,
मील का पत्थर बना मैं ,
'नीर' किसके वास्ते ।  

1 टिप्पणी:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रवाह मय रचना है ...