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पथ को तुम देखो जरा मन की आँखें खोलकर सत्यपथ को छोड़कर तुम जा रहे हो कौन पथ पर !ना प्यार के साए है इस पथना कोई हमराह है काफिलों को छोड़कर तुम जा रहे हो कौन पथ पर !ना कोई मंजिल है इस पथ ना लौटने के है निशाँ इंसानियत को छोड़कर तुम जा रहे हो कौन पथ पर !पाप के पथ आज तक जो भी गया वो मिट गया ज्ञान का पथ छोड़कर तुम जा रहे हो कौन पथ पर !
8 टिप्पणियां:
पाप के पथ जो भी गया मिट गया--बिलकुल सच कहा नववर्ष ंम्घाळांआय़ ःऔ
पाप के पथ आज तक
जो भी गया वो मिट गया
ज्ञान का पथ छोड़कर तुम
जा रहे हो कौन पथ पर !
bahut khub
ना कोई मंजिल है इस पथ
ना लौटने के है निशाँ
इंसानियत को छोड़कर तुम
जा रहे हो कौन पथ पर !
कितना सही लिखा है आपने...सच्ची मगर कड़वी बात...बेहतरीन रचना...
नीरज
hi neer ji aapko padhne ka mauka bahot dino ke baad mila...forum se to aapse mulakat hoti thi magar aaj achanak yaha milna hua behad achha laga...regards
नववर्ष की हार्दिक मंगलकामनाएँ!
बहुत अच्छा िलखा है आपने । जीवन और समाज की िवसंगतियों को यथाथॆपरक ढंग से शब्दबद्ध किया है । नए साल में यह सफर और तेज होगा, एेसी उम्मीद है ।
नए साल का हर पल लेकर आए नई खुशियां । आंखों में बसे सारे सपने पूरे हों । सूरज की िकरणों की तरह फैले आपकी यश कीितॆ । नए साल की हािदॆक शुभकामनाएं-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
पाप के पथ आज तक
जो भी गया वो मिट गया
ज्ञान का पथ छोड़कर तुम
जा रहे हो कौन पथ पर !
"" बहुत ही नेक और सुंदर जिन्दगी के सार्थक विचारो की प्रस्तुति. " मेरे ब्लॉग पर आपके हर अल्फाज का शुक्रिया."
Regards
वाह ! बहुत बहुत सुंदर लिखा है.
ऐसे ही लिखते रहो,शुभकामनाएं.
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