रात के जैसी काली चादर ओढ़ मेरा दिन आता है ।
सूरज तेरे दर पे दस्तक देने चलकर आता है ॥
देख के मेरे घर का रस्ता जुग्नू भी छुप जाता है ।
आसमान का हर तारा घर झांकने तेरे आता है ॥
काला बादल साथ हवा के देख मुझे उड़ जाता है ।
देख के बिखरी जुल्फें तेरी झूम के सावन आता है ॥
में जो कदम रखूँ बागों में सब वीराँ हो जाता है ।
तू हँस दे जो वीराँनों में वीराँ गुलशन हो जाता है ॥
जिस रस्ते पाँव रखूँ में निर्झर मंजिल से कट जाता है ।
तू जिस रस्ते पाँव रखे वो मंजिल से मिल जाता है ॥
सूरज तेरे दर पे दस्तक देने चलकर आता है ॥
देख के मेरे घर का रस्ता जुग्नू भी छुप जाता है ।
आसमान का हर तारा घर झांकने तेरे आता है ॥
काला बादल साथ हवा के देख मुझे उड़ जाता है ।
देख के बिखरी जुल्फें तेरी झूम के सावन आता है ॥
में जो कदम रखूँ बागों में सब वीराँ हो जाता है ।
तू हँस दे जो वीराँनों में वीराँ गुलशन हो जाता है ॥
जिस रस्ते पाँव रखूँ में निर्झर मंजिल से कट जाता है ।
तू जिस रस्ते पाँव रखे वो मंजिल से मिल जाता है ॥
6 टिप्पणियां:
बहुत गंभीर rachana है .....badhaaee sweekaarain
काला बादल साथ हवा के देख मुझे उड़ जाता है ।
देख के बिखरी जुल्फें तेरी झूम के सावन आता है ॥
में जो कदम रखूँ बागों में सब वीराँ हो जाता है ।
तू हँस दे जो वीराँनों में वीराँ गुलशन बन जाता है
वाह...वा...बहुत ही लाजवाब रचना है...बधाई...
नीरज
bahut sundar aur bhaavpoorn rachna hai.badhai.
में जो कदम रखूँ बागों में सब वीराँ हो जाता है
तू हँस दे जो वीराँनों में वीराँ गुलशन बन जाता है
--बहुत उम्दा!! वाह! आनन्द आ गया.
aisa hi hota hai ji
kahin kahin zindgi saath se chalti hai
jab do rekha milti hai to rasta aasan ho jata hai
aaj ek naya neer mil gaya jiska abhi tak pata hi nahi tha.
---------------bahut PYARA.
Ashvani Sharma
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