.
ना कर तर्क-ए-वफ़ा कांटे पे जरा तोलूँगा
खरा है कौन यहाँ सारे भरम खोलूँगा !
शूली पे चढ़ा दो या सर कलम कर दो
सच कड़वा ही सही मैं तो सच ही बोलूँगा !
सुना है शहर में आब-ओ-दाना मिलता है
भरे जो पेट, तो मै भी सड़क पे सो लूँगा !
हासिल हुआ है क्या तुझे घर मेरा जलाकर
मैं तो बेबस हूँ बहुत, भर के आह रो लूँगा !
अमन के बीज लिए फिरता हूँ अपने दामन में
रक्तरंजित है धरा फिर भी कहीं बो लूँगा
बहुत सहेज के रक्खी हैं भेंट यारों की
गले लगा तो जरा दिल की गिरह खोलूँगा !
22 टिप्पणियां:
सुना है शहर में आब-ओ-दाना मिलता है
भरे जो पेट, तो मै भी सड़क पे सो लूँगा
वाह ..बहुत खूबसूरत गज़ल
bahut khub sir ek baar phir se apne gazab likha hai
अमन के बीज लिए फिरता हूँ अपने दामन में
रक्तरंजित है धरा फिर भी कहीं बो लूँगा
वाह! सुन्दर रचना, सुन्दर प्रस्तुति!
बहुत अच्छी प्रस्तुति.धन्यवाद
सुना है शहर में आब-ओ-दाना मिलता है
भरे जो पेट, तो मै भी सड़क पे सो लूँगा
वाह! सच दिल से लिखी गयीं बहुत ही गहरी बातें बहुत खूबसूरत गज़ल
भरे जो पेट, तो मै भी सड़क पे सो लूँगा !
-------
wah... sach hee kaha hai bhukhe bhajan na hohi gopala.
सुना है शहर में आब-ओ-दाना मिलता है
भरे जो पेट, तो मै भी सड़क पे सो लूँगा !
अमन के बीज लिए फिरता हूँ अपने दामन में
रक्तरंजित है धरा फिर भी कहीं बो लूँगा !
वाह...वाह...वाह... क्या लिखा है...लाजवाब !!! बेहतरीन !!!!
एकदम मन को छू गयी यह सुन्दर रचना...
ऐसे ही नायाब लिखते रहो...लेखनी दिन प्रतिदिन निखरती जाए...बुलंदी पर पहुँचो...
अनंत शुभकामनाएं...
वाह वाह वाह वाह ....
गज़ब लिखा है यार .....
काफी दिनों के बाद आये हो ....
लेकिन ये रचना मस्त लाये हो....
आभार .......
अमन के बीज लिए फिरता हूँ अपने दामन में
रक्तरंजित है धरा फिर भी कहीं बो लूँगा ..
वैसे तो सभी पंक्तियाँ उम्दा हैं
लेकिन ये पंक्तियाँ मुझे सबसे ज़्यादा
अच्छी लगी .
अमन के बीज लिए फिरता हूँ अपने दामन में
रक्तरंजित है धरा फिर भी कहीं बो लूँगा
बेहतरीन पंक्तियाँ
बहुत खूबसूरत गज़ल.
बहुत सहेज के रक्खी हैं भेंट यारों की
गले लगा तो जरा दिल की गिरह खोलूँगा !
बहुत ही सुन्दर शब्द, बेहतरीन अभिव्यक्ति,
इस सुन्दर रचना को पढ़वाने का माध्यम चर्चा मंच था, जहां एक से बढ़कर एक रचनाओं का संगम हुआ।
शूली पे चढ़ा दो या सर कलम कर दो
सच कड़वा ही सही मैं तो सच ही बोलूँगा ...
लाजवाब ग़ज़ल है ... ये शेर तो खूब जिंदादिली की मिसाल है ... सुभान अल्ला ....
अच्छी रचना
बहुत सहेज के रक्खी हैं भेंट यारों की
गले लगा तो जरा दिल की गिरह खोलूँगा !
...बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ना कर तर्क-ए-वफ़ा कांटे पे जरा तोलूँगा
खरा है कौन यहाँ सारे भरम खोलूँगा !
शूली पे चढ़ा दो या सर कलम कर दो
सच कड़वा ही सही मैं तो सच ही बोलूँगा !
bahut hi sundar ,sach haarta nahi kabhi bhale jakhmi hota rahe .
अमन के बीज लिए फिरता हूँ अपने दामन में
रक्तरंजित है धरा फिर भी कहीं बो लूँगा
- ऐसे लोग बहुसंख्यक होने चाहिए |
शूली पे चढ़ा दो या सर कलम कर दो
सच कड़वा ही सही मैं तो सच ही बोलूँगा !
..सुंदर भाव।
शूली पे चढ़ा दो या सर कलम कर दो
सच कड़वा ही सही मैं तो सच ही बोलूँगा !..
That is all we expect !
.
अमन के बीज लिए फिरता हूँ अपने दामन में
रक्तरंजित है धरा फिर भी कहीं बो लूँगा
बेहद खूबसूरत गज़ल.
बहुत सहेज के रक्खी हैं भेंट यारों की
गले लगा तो जरा दिल की गिरह खोलूँगा !
very nice neer ji
हासिल हुआ है क्या तुझे घर मेरा जलाकर
मैं तो बेबस हूँ बहुत, भर के आह रो लूँगा !
अरे बेवसी का फायदा कौन नहीं उठता ...दिल को छु लेने वाली पंक्तियाँ
चलते -चलते पर आपका स्वागत है
badhiya gazal.. achha likhte hain aap.. pahli baar aapke blog par aayaa achha laga mujhe..
एक टिप्पणी भेजें